सी. वी रमन आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक थे। उनका पूरा नाम  चंद्रशेखर वेंकट रमन था।  सी वी रमन का ‘रमन प्रभाव’ अद्भुत और महत्वपूर्ण खोजों में से एक था , उन्होंने ज्ञात किया कि जब प्रकाश एक पारदर्शी सामग्री का पता लगाता है, तो कुछ विक्षेपित प्रकाश तरंगदैर्ध्य और आयाम बदल जाते हैं। इस घटना को  रमन प्रकीर्णन के रूप में जाना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रमन प्रभाव होता है। जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपना  महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी अनूठी खोजों से भारत को विज्ञान की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई। उनकी खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा प्रदान की, जिससे देश के विकास को भी बढ़ावा मिला। 1954 में, भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया।

व्यक्तिगत जीवन:-

सी. वी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को टीएम के तिरुचिरापल्ली शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर था, वह फिजिक्स और गणित के एक अध्यापक थे। उनकी माता का नाम पार्वती अम्मल था। सी वी रमन को  छोटी उम्र से ही अंग्रेजी साहित्य और विज्ञान की किताबे पढ़ने का शौक था। उनमे  किसी चीज को सीखने और समझने की क्षमता भी बेहद तेज थी, उन्होंने सेंट अलोय्सिअस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल, विशाखापट्नम से अपनी 10वीं तक की शिक्षा पूर्ण की। 13 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उसके बाद, उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास (चेन्नई) से स्नातक की डिग्री ली। इस दौरान, उन्होंने पहली बार फिजिक्स में ‘गोल्ड मेडल’ भी प्राप्त किया था। 1907 में, उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल की। अपनी एमएससी की पढ़ाई के दौरान ,उन्होंने  ध्वनिकी और प्रकाशिकी के क्षेत्र में रिसर्च करनी शुरु कर दिया था। उनके प्रोफेसर आर एस जोन्स भी उनकी प्रतिभा को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने सीवी रमन को उनका शोध वी शोध पेपर के रूप में प्रकाशित करने की सलाह दी।

6 मई 1907 को, उन्होंने  लोकसुंदरी अम्मल से विवाह किया। उनके दो बेटे चंद्रशेखर और रेडियो-खगोलशास्त्री राधाकृष्णन थे।

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करियर:-

सी वी रमन कोलकाता में, उन्होंने सहायक लेखापाल के तौर पर अपनी पहली सरकारी नौकरी जवाइन की। लेकिन, उन्होंने एक्सपेरिमेंट और रिसर्च करना नहीं छोड़ा, वे कोलकाता में  ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस ’में अपनी खोज करते रहे।  1917 में, उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा से दिया क्योकि वह  विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे! वह ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ लैब में मानद सचिव के पद पर नियुक्त हुए। 1924 में, सी वी रमन को ‘ऑपटिक्स’ के क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान के लिए लंदन के ‘रॉयल सोसायटी’ की सदस्य बनाया गया। 28 फरवरी 1928 को, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और काफी संघर्षो  के बाद ‘रमन प्रभाव’ की खोज की। उनकी इस खोज ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई। साथ ही उन्होंने यह नही खोज निकाला की जब भी कोई लाइट किसी पारदर्शी माध्यम से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियेर में चेंज आ जाता है।  इस वजह से  समुद्र का जल नीले रंग का होता है।सी वी रमन की इस महान खोज के लिए भारत सरकार ने 28 फरवरी के दिन को हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रुप में मनाने की भी घोषणा की।

1934 में, उन्हें बेंगलौंर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में डायरेक्टर बनाया गया था। इस दौरान भी वह स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, हीरे की संरचना, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे और गुणों समेत कई रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर खोज करते रहे। उन्होंने तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की भी खोज की थी। 1948 में, सी.वी रमन आईआईएस से रिटायर्ड हो गए थे।1948 में, सी.वी रमन ने   रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर की स्थापना की थी।

पुरुस्कार व उपलब्धियां:-

1924 में, वैज्ञानिक सीवी रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया।

उन्होंने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, इसलिए भारत सरकार ने हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।

1929 में, उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 16 वें सत्र की अध्यक्षता की।

1930 में, उन्हें प्रकाश के प्रकीर्णन और ‘रमन प्रभाव’ जैसी महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें भारत के उत्कृष्ठ और प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गया।

1954 में, उन्हें  भारत रत्न द्वारा देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया।

1957 में, उन्हें  रूस का लेनिन शान्ति पुरुस्कार प्रदान किया गया।

निधन:-

सी वी रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर में अपनी लैब में काम कर रहे थे, तभी अचानक उनको हार्ट अटैक आया, 21 नवंबर 1970 को, उनका निधन हो गया।

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