विनायक दामोदर सावरकर महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे। उन्हें अधिकतर लोग वीर सावरकर के नाम से जानते है. वह भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वह हिंदु संस्कृति में जातिवाद की परंपरा का विनाश करना चाहते थे. साथ ही, वह सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे. वह एक महान समाज सुधारक भी थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। 1904 में, उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व शामिल थे। इस प्रकार, उन्होंने अपने जीवन में देश को सुधारने के काफी प्रयत्न किये.

व्यक्तिगत जीवन:-

विनायक सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर था, 1899 में, प्लेग की महामारी में उनका निधन हो गया था। उनकी माता का नाम राधाबाई था। जब वह नौ वर्ष के थे तब हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। उनके दो भाई गणेश (बाबाराव) और  नारायण दामोदर सावरकर थे और एक बहन नैनाबाई थीं। उनके माता-पिता के देहांत के बाद उनके परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई गणेश पर आ गयी। 1901 में, विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से  मैट्रिक की पढाई पूर्ण की। 1901 में, विनायक का विवाह यमुनाबाई से हुआ था। यमुनाबाई रामचंद्र त्रिंबक चिपलूनकर की बेटी थी. १९०२ में,  उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया। एक युवा व्यक्ति के रूप में उन्हें नयी पीढ़ी के राजनेता जैसे बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपत राय से काफी प्रेरणा मिली जो उस समय बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी अभियान चला रहे थे. 1904 में , उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। 1905 में, बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वह राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। उनके लेख इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये। 10 मई 1907को ,  उन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई।

मई 1909 में, उन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली पाई। उसके बाद, उन्होंने लंदन के ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद इंडिया हाउस में रहना शुरू कर दिया था। वहां पर उन्होंने ‘फ्री इण्डिया सोसायटी’ का निर्माण किया जिससे वो अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे। 1 जुलाई 1909 को, मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दी , इस घटना के बाद ,उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को, वह एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 4 दिसम्बर 1910 को, उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को, उन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजीवन कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए ,उन्हें  7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। 1920 में, वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर उनकी रिहाई हो गई। 1921 में, स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने फिर ३ साल जेल भोगी। जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। 25 फरवरी 1931को, उन्होंने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की. 1937 में, वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती अध्यक्ष चुने गये. 15 अप्रैल 1937, उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। वह जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और उनका एकदम अलग दृष्टिकोण था।

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अंतिमकाल और मृत्यु:-

15 अगस्त 1947 को, उन्होंने सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। 5 फ़रवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन बाद में कोर्ट की करवाई में उन्हें निर्दोष पाया गया और उन्हें रिहा कर दिया गया, उनपर ये आरोप भी लगाया गया था की वे “भड़काऊ हिंदु भाषण” देते है लेकिन कुछ समय बाद उन्हें पुनः निर्दोष पाया गया और रिहा कर दिया गया. 8 नवम्बर 1963 को, उनकी पत्नी यमुनाबाई का स्वर्गवास हो गया। सितम्बर, 1965 से उन्हें तेज ज्वर ने  घेरा, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फ़रवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। 26 फ़रवरी 1966 को बम्बई में प्रातः 10 बजे उनका निधन हो गया. उनकी अंतिम यात्रा पर 2000 आरएसएस के सदस्यों ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी और उनके सम्मान में “गार्ड ऑफ़ हॉनर” भी किया था.

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