Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindi | बाल गंगाधर तिलक पर निबंध

Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindi

Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindiमेरी बचपन से ही इतिहास में बहुत रूचि रही हैं। शुरुआत से ही मुझे देश के महान लोगो के बारे में पढना काफी अच्छा लगता हैं क्यूंकि उनके जीवन से हमें अपने देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती हैं। महात्मा गाँधी, रानी लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई महान स्वतंत्र सेनानियों ने इस देश में जन्म लिया हैं। इनमें से एक राष्ट्रीय चेहरा ऐसा भी हैं जो सभी से भिन्न हैं। उनका किरदार ऐसा है की जब आप उनके बारे में पढ़ते है तो आपका मन अभिमान से ऊँचा हो जाता है की हम ऐसे देश में पैदा हुआ जिसने ऐसे वीर को जन्म दिया। मैं बात कर रहा हूँ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के बारे में।

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिकल गाँव में हुआ था। तिलक को लोगो ने अपना नेता स्वीकार किया और इसी कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। उनकी सर्वमान्य छवि ही इस उपाधि का कारण थी।

जब तिलक छोटे थे तब उन्होंने अपने पिता से संस्कृत के एक उपन्यास कादंबरी को पढने की आज्ञा मांगी। बच्चो के लिए यह उपन्यास समझने के लिए बहुत कठिन हैं। इसके बजाय पिता के एक गणितीय पहेली हल करने को दी। पहेली कठिन थी लेकिन फिर भी तिलक ने उसे रिकॉर्ड टाइम में सुलझा लिया।

तिलक ने एक वकील और बाद में एक अध्यापक के रूप में काम किया। भारत की सामाजिक और राजनेतिक स्थिति ने उन्हें अन्दर तक झकझोर कर रख दिया।

1881 में उन्होंने दो समाचार पत्रों केसरी (मराठी) और मराठा (अंग्रेजी) की शुरुआत की। इन समाचार पत्रों के माध्यम से, उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया और जनता को जागृत करने का कार्य किया।

तिलक ने बाल विवाह जैसे सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह और साक्षरता की वकालत की। उन्होंने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाना शुरू किया। उन्होंने शिव जयनी उत्सव की भी शुरुआत की। यह उत्सव भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोगो को एक साथ लाने के लिए शुरू किये गए थे।

तिलक को कई बार जेल भी जाना पड़ा। जेल में ही उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गीता रहस्य की रचना की। अपनी रिहाई के बाद वे होम रूल आन्दोलन में कूद पड़ें। 1 अगस्त 1920 को इस महान देशभक्त ने सदा के लिए संसार को अलविदा कह दिया। देश भर में बहुत से लोगों ने उन्हें श्रधांजलि दी।

तिलक की महानता इस तथ्य में निहित है कि उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय लोगों को एकजुट करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने नारा दिया, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा।” उन्होंने सभी से देश के लिए त्याग करने की अपील की। वे एक महान देशभक्त थे। ऐसे पुरुष विरले ही होते हैं।

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