एक बार दो मेंढक एक डेयरी में जा घुसे | वहां दूध से भरे बड़े- बड़े मटके रखे थे|
वे दोनों दूध से भरे एक मटके में गिर गए|
फिर वे मटके से बाहर आने क लिए उछलने लगे , क्योकि उनके पैर को कोई ठोस आधार नहीं मिल रहा था, इसलिए छलांग लगाकर बाहर आना उनके लिए मुश्किल हो गया|
जब इस कोशिश में वे थक गए तो उन्होने गोल दायरे में तैरना शुरू कर दिया|
कुछ देर बाद एक मेंढक बोला, “में बहुत थक गया हूँ | अब मैं और ज्यादा तैर नहीं सकता |”
उनसे बाहर निकलने की कोशिश छोड़ दी | इसलिए वह मटके के दूध में डूबकर मर गया |
दूसरे मेंढक ने सोचा, में अपनी कोशिश नहीं छोडूंगा| इसकी तरह डूबकर क्यों मरुँ |
तैरते-तैरते कोई रास्ता सूज ही जाये | मैं तब तक तैरता रहूँगा, जब तक कोई रास्ता निकल नहीं आता |
वह तैरता रहा |इस प्रकार उसके लगातार तैरते-तैरते दूध मथने लगा और उसके ऊपर मक्कन जमा हो गया| कुछ देर के बाद मेंढक ने मक्कन के गोले पर चढ़कर जोर की छलांग लगाई | वह मटके के बाहर आ गिरा| इससे यह सिद्ध होता है की हमे संकट के समय निराश नहीं होना चाहिए बल्कि पूरे आत्म विश्वास और पूरी शक्ति से उस संकट का सामना करना चाहिए|
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