राजस्थान के किलो का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है यह राजपूतो की बहादुरी के लिए जाना जाता है| राजस्थान में रानी पद्मावती का किस्सा भी बहुत प्रचलित है| रानी पद्मावती के जीवन की कहानी साहस, वीरता व त्याग से भरी हुई है| वह अपनी सुन्दरता की लिए बहुत प्रचलित थी| हर जगह उनकी सुन्दरता की मिसाल दी जाती थी | रानी पद्मावती चितौड़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थी|

रानी पद्मावती की कहानी:-

रानी पद्मावती गंधर्वसेन  की पुत्री थी वह सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे| उनकी माता का नाम चंपावती था। रानी पद्मावती बचपन से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं और साथ ही वह गुणवान भी थी| बचपन में पद्मावती के पास एक बोलता तोता था जिसका नाम हीरामणि था। कहा जाता है की रानी इतनी सुन्दर थी की वह पानी भी पीती थी तो पानी गले के अन्दर देखा जा सकता था| उनके पिता गंधर्वसेन पद्मावती के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमे भाग लेने के लिए अलग-अलग राज्यों के राजा उपस्थित हुए थे जिनमे चितौड़ के राजा रतन सिंह और एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था। राजा रतन सिंह ने मल्खान सिंह को हार का मुँह दिखाकर रानी पद्मावती को अपना बना लिया| उसके बाद, राजा रतन सिंह अपनी पत्नी पद्मावती के साथ चितौड़ लौट आये|

राजा रतन सिंह राजनीती में निपुण और रण कौशल थे| उनके शासन में प्रजा  सुख- समृद्धि से संपन थी| उनका दरबार कई कुशल योद्धाओ से भरा हुआ था उसी दरबार में राघव चेतन नाम का प्रसिद्ध संगीतकार था| राघव चेतन को दरबार में विशेष स्थान प्राप्त था| संगीत कला के अलावा वह जादू-टोना भी जानता था लेकिन इस बात का महाराज को पता नही था| राघव चेतन जादू-टोने का उपयोग अपने कार्य सिद्ध करने के लिए करता था| एक दिन जब राघव जादू-टोना कर रहा था| तब उसे सेना द्वारा रंगों हाथो पकड़ लिया गया और राजा रतन सिंह के सामने पेश किया गया| राजा ने राघव चेतन को दोषी ठहराया और उसका मुँह काला कर गधे पर बिठा कर देश निकला दे दिया|

इस घटना के बाद राघव चेतन राजा रतन सिंह का शत्रु बन गया और अपने अपमान का बदला लेने पर आमादा हो गया। उसके जीवन का एक ही लक्ष्य रह  गया था और वह था चित्तौड़ के महाराज रावल रत्न सिंह का सम्पूर्ण विनाश। तत्पश्चात, वह दिल्ली राज्य में चला गया| राघव वहां के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से मिलना चाहता था| लेकिन उन दिनों सुल्तान से मिलना आसान कार्य नही था| एक दिन जब सुल्तान शिकार पर गये तब उसने मौका पाकर अपनी बांसुरी बजाना शुरू कर दिया, उसकी बांसुरी के सुर सुल्तान व सिपाहियों के कानो में पड़े|  अलाउद्दीन खिलजी आश्चर्य में था की जंगल में इतनी मधुर बांसुरी कौन बजा रहा है| सुल्तान ने सिपाहियों को राघव चेतन को दरबार में पेश करने का आदेश दिया| इस प्रकार राघव चेतन का मकसद हुआ और उसी वक़्त वह सुल्तान को कहता है की- आप मुझ जेसे कलाकार को अपने दरबार की शोभा बना कर क्या पायेगे अगर हासिल करना है तो अन्य संपन्न राज्यों की तरफ नज़र डालिए| सुल्तान राघव को कहता है की पहेलिय ना बनाये, साफ़-साफ़ बताये की कहना क्या चाहते है तब राघव चेतन चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहाँ की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज़ खोल देता है और राजा रावल रत्न सिंह की धर्म पत्नी रानी पद्मावती के अद्भुत सौन्दर्य का बखान भी कर देता है। यह सब बाते सुनकर अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण कर के वहाँ की सम्पदा लूटने, वहाँ कब्ज़ा करने और रानी पद्मावती को हासिल करने का मन बना लेता है।

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अलाउद्दीन खिलजी नें कुछ ही दिनों में चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण करने के लिए अपनी एक विशाल सेना चित्तौड़ राज्य की और रवाना कर दी। सुल्तान की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी लेकिन चित्तौड़ के किले की अभेद्य सुरक्षा देख कर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना हैरान रह गयी। सेना ने किले पास ही अपना डेरा डाल लिया और चित्तौड़ राज्य के किले में घुसने के उपाय ढूढ़ने लगे| रानी पद्मावती अपनी सुंदरता के लिये दूर-दूर तक चर्चा का विषय बनी हुई थी। इस बात का फायदा उठाते हुए  अलाउद्दीन खिलजी नें चित्तौड़ किले के अंदर राजा रावल रत्न सिंह के पास एक संदेश भिजवाया कि वह रानी पद्मावती की सुंदरता की चर्चा सुन कर उनके दीदार के लिये दिल्ली से यहाँ तक आये हैं उन्होंने कहा की वह रानी पद्मावती को अपनी बहन समान मानते हैं|

इस सन्देश को  राजपूत मर्यादा के विरुद्ध बता कर राजा रावल रत्न सिंह नें ठुकरा दिया। लेकिन राज्य में शांति बनाये रखने के लिए उन्होंने उस समय एक रास्ता निकाला। रतन सिंह ने भी एक शर्त राखी की सुल्तान रानी को आईने के प्रतिबिंब में देख सकते है| इस तरह राजपूतना मर्यादा भी भंग ना होगी और अलाउद्दीन खिलजी की बात भी रह जायेगी। शर्त अनुसार महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया|  राजा रतन सिंह सुल्तान को चित्तौड़ किले के सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। इस मौके का फायदा उठाकर अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर अपनी छावनी में कैद कर दिया। और चित्तौड़ किले में सन्देश भिजवाया की अगर महाराज रावल रत्न सिंह को जीवित देखना है तो रानी पद्मावती को फौरन अलाउद्दीन खिलजी की खिदमद में किले के बाहर भेज दिया जाये।

राजा रतन सिंह के अगवा होने से किले में अफरा-तफरी मच जाती है रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की गिरफ्त से सकुशल मुक्त कराने के लिये रानी पद्मावती, गौरा और बादल नें मिल कर एक योजना बनाई। उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी तक यह पैगाम भेजा की रानी पद्मावती समर्पण करने के लिये तैयार है| उन्होंने  सैकड़ों पालकियाँ तैयार की और पालकियों में रानी पद्मावती और उनकी दासियो की जगह सैनिको को नारी भेष में बिठा दिया, और दिल्ली की सेना पर आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया| जब चित्तौड़ किले के दरवाज़े एक के बाद एक खुले तब अंदर से एक की जगह सैकड़ों पालकियाँ बाहर आने लगी। जब यह पूछा गया की इतनी सारी पालकियाँ क्यूँ साथ हैं तब अलाउद्दीन खिलजी को यह उत्तर दिया गया की यह सब रानी पद्मावती की खास दासीयों का काफिला है जो हमेशा उनके साथ जाता है।

वासना और लालच में अलाउद्दीन खिलजी ने इस  बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है।अलाउद्दीन खिलजी नें रानी पद्मावती की पालकी अलग करवा दी और परदा हटा कर उनका दीदार करना चाहा। तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया।  उसी वक्त चित्तौड़ के  सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया और वहाँ मची अफरातफरी में बादल नें राजा रावल रत्न सिंह को बंधन मुक्त करा लिया| उन्होंने राजा रतन सिंह को घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। दुर्भाग्य से,  इस लड़ाई मे राजपूत सेनापति गौरा और कई सैनिक शहीद हो गए।

इस घटना के बाद, सुल्तान खिलजी झल्ला उठा और उसनें उसी वक्त चित्तौड़ किले पर आक्रमण कर दिया लेकिन कठोर सुरक्षा होने की वजह से वह किले में दाखिल नहीं हो सके। कुछ दिनों में किले के अंदर खाद्य आपूर्ति समाप्त हो गयी और वहाँ के निवासी किले की सुरक्षा से बाहर आ कर लड़ मरने को मजबूर हो गये। प्रजा की समस्या को देखते हुए  रावल रत्न सिंह नें द्वार खोल कर आर- पार की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया और किले के दरवाज़े खोल दिये। अलाउद्दीन खिलजी ने और उसकी सेना नें दरवाज़ा खुलते ही तुरंत आक्रमण कर दिया। इस भीषण युद्ध में पराक्रमी राजा रावल रत्न सिंह  लड़ते-लड़ते वीर गति हो प्राप्त हुए और उनकी पूरी सेना भी हार गयी। अलाउद्दीन खिलजी नें एक-एक कर के सभी राजपूत योद्धाओं को मार दिया और किले के अंदर घुसने की तैयारी कर ली।

जब रानी पद्मावती को इस बात का पता चला की चित्तौड़ की सेना और रतन सिंह वीर गति को प्राप्त हो चुके है तब राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें जौहर करने का फैसला लिया। जौहर की रीति के लिए उन्होंने नगर के बीच एक बड़ा सा अग्नि कुंड बनाया गया और रानी पद्मावती और अन्य महिलाओं ने एक के बाद एक महिलायेँ उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि दे दी।

इतिहास में राजा रावल रत्न सिंह, रानी पद्मावती, सेना पति गौरा और बादल के बलिदान को आज भी याद किया जाता है। रानी पद्मावती की कहानी आज के युग में भी बहुत प्रचलित है।