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कबीर दास जी के दोहे Kabir Ke Dohe

Nikhil | दोहे | 09/08/2017 |

कबीरदास जी ने अपने जीवनकाल में कई दोहों की रचना की जिनसे मानवजाति सीख ले सकती है. उनके द्वारा लिखे गए दोहे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुए. वैसे तो उनके द्वारा लिखे गए दोहे बहुत सारे हैं उनमें से हम कुछ बहुत प्रसिद्ध kabir ke dohe आपके सामने अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं आशा करते हैं कि यह कबीर के दोहे आपको जरुर पसंद आएंगे।

Kabir Ke Dohe in Hindi with meaning

संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Kabir Ke Dohe in Hindi with meaning

***

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि वह न तो किसी को छाया देता है और उसके फल भी बहुत ऊपर लगते हैं जिन्हें तोड़ने में कठिनाई होती है.

***

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥

कबीर दास जी कहते हैं कि रात तुमने सोने में गवा दी और दिन के समय तुम बस खाते रहे इस तरह तुमने यह अनमोल जीवन यूं ही व्यर्थ गवा दिया। अब इस जीवन का मूल्य एक कौड़ी रह गया है

***

आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत |
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||

समय यूं ही निकलता गया और ना ही तुमने प्रभु से प्रीत लगाई, ना ही उनके प्रति स्नेह प्रकट किया. अब भला पछताने से क्या फायदा ? तुम्हारी हालत तो उसे किसान के समान है जो चिड़ियों द्वारा खेत उजड़ जाने के बाद फसल की देखभाल करना शुरू करता है.

READ  “तुलसीदास जी के 10 सर्वश्रेष्ठ दोहे अर्थ सहित हिंदी में” (Tulsidas ji ke 10 Best Dohe Hindi Me)

***

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||

जब मैं अज्ञानता के अंधेरे में था तब हे प्रभु मैं आपको नहीं देख पाता था लेकिन जबसे ज्ञान की लो मेरे अंदर जागी है मुझे आपके होने का ज्ञान हो गया है. ज्ञान के प्रकाश ने समस्त अंधकार को हर लिया और उसकी रोशनी में मैंने आपको पा लिया.

***

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.

 पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.

कबीर मानव जाति को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि तुम अपनी इच्छाओं का त्याग कर दो, उन्हें तुम अपने दम पर पूरा नहीं कर सकते.  यदि पानी से ही ही निकल आए तो सूखी रोटी कोई न खाए.

***

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.

कबीर कहते हैं कि इतना ही धन संचय करो जो भविष्य में काम आए मैंने किसी को भी धन की गठरी बांध कर ले जाते नहीं देखा

***

 कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ.

 जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ.

कबीर कहते हैं कि मनुष्य का शरीर एक पक्षी की भांति हो गया है जहां उसका मन करता है वह अपने शरीर को वहीं ले जाता है. यह सत्य है कि जो जैसी संगती करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है

***

नोट: आपके साथ ये kabir ke dohe शेयर करते हुए मैं बहुत आनंदित महसूस कर रहा हूँ. आप हमें कमेंट करके बताइए की आपको ये कबीर के दोहे कैसे लगे.

READ  “सूरदास के दोहे हिंदी में” (Couplets of Surdas in Hindi)

Tags:  kabir ke dohe
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