अरेबियन शहर में स्थित मक्का की कहानी बड़ी ही रोचक है। यमन के प्रवासियों के द्धारा बसाया गया यह शहर मुस्लिम समुदाय का केंद्र है। दुनिया के कोने कोने से मुस्लिम मक्का में आते है और 5 समय की नमाज़ पढ़ते है। इस्लाम का पांचवा स्तम्भ होने के कारण प्रत्येक मुस्लिम का जीवन में एक बार यहाँ आना जरूरी है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार मक्का एडम के द्धारा बनाई गयी था, जोकि 90 फ़ीट ऊँची है।
ज्यादातर मुस्लिम 12 वे लूनर महीने में हज की यात्रा करते है। यह स्थान मुह्हमद साहब का जन्म स्थान है तथा कुरान की मान्यता भी यही से शुरू हुई थी।
मक्का- मदीना का इतिहास – मक्का में मोहम्मद साहब के वंशजो ने बहुत समय तक राज किया था। इसीलिए मक्का को इस्लाम का घर भी माना जाता है।
काबा – पुराने समय से ही मक्का धर्म और व्यापर का केंद्र रहा है। मक्का की यह धरती एकदम बंजर थी, वहाँ कभी भी वर्षा नहीं होती थी। शहर को चलाने के लिए शहरवासियों के कर पर ही आश्रित होने पड़ता था। मक्का में बड़े पत्थरो से निर्मित एक विशाल मस्जिद है जिसके मध्य काबा स्थित है। यह काबा 40 फुट लंबा और 33 फुट चौड़ा है। जिसमे एक दरवाजा है। काबा के पूर्व में एक काला पत्थर है जिसके चारो और मुस्लिम चक्कर लगते है और उसे चूमते है।
622 ई. में मोहम्मद साहब मक्का छोड़ कर मदीना चले गए थे। मस्जिद के पास ही एक कुआँ है जिसके पानी को बहुत पवित्र माना जाता है, इस पानी को यहाँ आने वाले लोग भरकर अपने घर में बरकत के लिए रखते है।
विश्व के कोने से लोग यहाँ पर आते है। परन्तु यहाँ पर केवल मुस्लिम लोगो की आने की अनुमति है। इसके आस पास के क्षेत्र को बहुत पवित्र माना जाता है और यहाँ कभी युद्ध नहीं होता तथा यहाँ के पेड़ पोधो को काटा भी नहीं जाता है।
हज़ का समय – मक्का में प्रत्येक मुस्लमान को जाना अनिवार्य है। मक्का काबा के चक्कर लगाने के बाद हर मुस्लिम धन्य हो जाता है। यही पर आकर हज़ यात्रा सम्पन हो जाती है। सम्पूर्ण विश्व के कोने कोने से लोग यहाँ आते है उस दिन को ईद-उल -जूहा के नाम से पुकारा जाता है। भारत में इसे बकरीद कहा जाता है। हज़ यात्रा पूर्णतया तभी संपन्न होती है जब हज़ जाने वाले के द्वारा मान्य पशु की बलि दी जाती है।
मक्का में ‘मस्जिद-अल-हरम’ नाम से एक विख्यात मस्जिद है। इस प्राचीन मस्जिद के चारों ओर पुरातात्विक महत्व के खंभे हैं। लेकिन कुछ समय पहले सऊदी सरकार के निर्देश पर इसके कई खंभे गिरा दिए गए। इस्लामी बुद्धिजीवियों में से अनेक लोगों का यह मत है कि इसी के पास से पैगम्बर साहब ‘बुरर्क’ (पंख वाले घोड़े) पर सवार होकर ईश्वर का साक्षात् करने के लिए स्वर्ग पधारे थे। बताया जाता है कि ‘मस्जिद-अल-हरम’ 356 हज़ार 800 वर्ग मीटर में फैली हुई है।
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