Biography Inspirational

मलाला योसुफ़जाई की जीवनी | Malala Yousafzai Biography In Hindi

Malala Yousafzai Biography In Hindi
Malala Yousafzai Biography In Hindi

जिनके दिलों में नेकी और आंखों में चमक होती है उनकी आंखों में अल्लाह की झलक होती है। यह कहानी है मलाला युशुफ़ज़ई की जो पाकिस्तान मूल की सामाजिक कार्यकर्ता है। जिन्होंने पूरे विश्व में पाकिस्तान का नाम रोशन किया है, जो आतंकवाद से पीड़ित है।

मलाला को उनके सामाजिक कार्यों के लिए नोबल पुरस्कार मिला है। नोबेल पाने वाली वह पूरे विश्व की सबसे कम उम्र की शख्सियत हैं। मलाला का जन्म 12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के मिंगोरा शहर में एक पश्तो परिवार में हुआ था। मलाला ने जिस गांव में जन्म लिया था वहां पर लड़की के जन्म पर जश्न नहीं बनाते लेकिन इसके बावजूद उनके पिता ने मलाला के जन्म पर जश्न मनाया। माता-पिता ने बच्ची  का नाम मलाला रखा। उनकी पश्तो जाति अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा के आस पास की बसी थी और पाकिस्तान में एक लोक कथा प्रचलित है जिसमें मईवाड़ नामक प्रांत में मलालाई नाम की एक लड़की रहती थी जो एक चरवाहे की बेटी थी। उस समय उनका गांव मईवाड़ अंग्रेजों के कब्जे में था जिसे छुड़ाने के लिए अंग्रेजो के साथ गांव वालों का युद्ध हुआ। जब मलालाई को यह पता चला की युद्ध में गांव के कई नौजवान घायल हो गए तो उनकी मरहम पट्टी और पानी पिलाने के लिए वह युद्ध भूमि में चली गई। जहां उसने अपने गांव के नौजवानों को हारते हुए देखा।

जैसे ही देश का झंडा जमीन पर गिरने लगा वह उसे उठाकर जोर से नौजवानों को प्रेरित करने लगी। तभी उन पर गोली चला दी गई। वहीं पर वह शहीद हो गई। तब से इतिहास में उनका नाम मलालाई मईवाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। काबुल के बीचोंबीच उनकी याद में एक मईवाड़ विजय स्मारक बना हुआ है। मलालाई के नाम पर मलाला के पिता ने उनका यह नाम रखा।

मलाला के पिता उसे मैं मईवाड़ की मलालाई के किस्से सुनाया करते थे और प्यार से जानेमून कहां करते थे। जानेमून का मतलब है जान से भी प्यारा। मलाला बचपन से ही शांत स्वभाव की थी। जब मलाला का जन्म हुआ तब उनके पिता ने स्कूल खुलवाया था। स्कूल के पास में ही उनका घर था। जिसमें केवल दो कमरे थे। एक कमरा मेहमानों के लिए था और दूसरे में पूरा परिवार एक साथ रहता था। उनके घर में टॉयलेट और किचन कुछ भी नहीं था। चूल्हे पर लकड़ियों की आग पर खाना पकाया जाता था जोकि आंगन में था। मलाला बचपन में एक डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन उनके पिता ने राजनीतिज्ञ बनने की प्रेरणा दी। वह मलाला को राजनीति के बारे में किस्से सुनाया करते थे जिसका मलाला के जीवन पर एक गहरा प्रभाव पड़ा। मलाला ने तालिबान के खिलाफ सितंबर 2008 में शिक्षा के अधिकार पर बोलना शुरू कर दिया।

एक बार उनके पिता मलाला को पेशावर लोकल प्रेस क्लब लेकर गए। मलाला के बयानों को लोकल न्यूज़पेपर और टीवी चैनल के माध्यम से पूरे पाकिस्तान में फैलाया गया। मलाला खुद एक डायरी भी लिखती थी जिसे बीबीसी उर्दू ने प्रकाशित किया। जब स्वात घाटी में तालिबानियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था तब बीबीसी उर्दू वेबसाइट के अमाद अहमद खान एक ऐसी लड़की तलाश कर रहे थे जो स्वात घाटी में अपने जीवन के बारे में ब्लॉग में बताएं लेकिन पूरी स्वात घाटी में ऐसी कोई लड़की नहीं मिली क्योंकि ऐसा करने पर उनके परिवार को तालिबानियों द्वारा खत्म कर दिए जाने का डर था। ऐसे में मलाला के पिता ज़ियाउद्दीन युसुफ़ज़ई ने अपनी 11 वर्षीय बेटी को इस काम के लिए चुना। उस समय तालिबानी आतंकवादी स्वात घाटी में tV, संगीत, औरतों के बाजार जाने और लड़कियों की शिक्षा बंद करवाने में लगे हुए थे। लोगों में डर पैदा करने के लिए शहर के बीचोबीच धड़ अलग किए हुए पुलिसकर्मियों को तालिबानियों ने टांग रखा था।

मलाला की सुरक्षा के लिहाज से  बीबीसी ने उनका ब्लॉग लमकई के नाम से प्रकाशित किया। मलाला ने अपने हाथों से लिखे हुए नोट्स को बीबीसी के रिपोर्टर तक भेजा। इसे स्कैन करके पब्लिश किया गया। इस ब्लॉग की वजह से घाटी में लड़ाई छिड़ गई। जिसके कारण स्कूल बंद करा दिए गए। इसके बाद पाकिस्तानी सेना और तालिबानी आतंकवादियों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसके बाद उस क्षेत्र पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया। इसके बाद मलाला के पिता ने पेशावर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आतंकवादियों की आलोचना कि इसके बाद तालिबानी कमांडर से रेडियो पर उनको मौत की धमकी मिलने लगी। युद्ध से पाकिस्तान में जगह-जगह शरणार्थी कैंप लगा दिए। कई दिनों के इंतजार के बाद सरकार ने स्वात घाटी में वापस लौटने को सुरक्षित बताया। मलाला अपने परिवार के साथ स्वात घाटी लौट गई। जिसके बाद मलाला ने कई न्यूज़ चैनल पर इंटरव्यू दिए और वूमेन एजुकेशन पर जोर देने को कहा। इस काम के लिए 2011 में उन्हें इंटरनेशनल चिल्ड्रन पीस प्राइज दिया गया। यह अवार्ड पाले पाने वाली वह पहली पाकिस्तानी बनी।

उनका पब्लिक प्रोफाइल बढ़ता जा रहा था और उन पर खतरा मंडराने शुरू हो गए थे। मलाला के Facebook अकाउंट पर उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही थी लेकिन मलाला उन धमकियों से नहीं डरी। जब तालिबानियों को लगा कि यह लड़की ऐसे मानने वाली नहीं है तो आतंकवादियों ने मलाला को मारने की साजिश रची। 9 अक्टूबर 2012 को जब वो एग्जाम देकर वापस घर लौट रही थी तभी एक नकाबपोश आतंकवादी स्कूल बस में चढ़ गया और जोर से चिल्लाया तुममे से मलाला कौन है? जल्दी बताओ वरना मैं तुम सभी को गोली मार दूंगा। तभी अदम्य साहस के साथ मलाला खड़ी हुई और बोली मैं हूं मलाला यह सुनते ही आतंकवादी ने गोलियां चला दी। जिसमें से एक गोली मलाला के सिर के बाएं हिस्से में लगी जो चमड़ी से होते हुए कंधे में जा घुसी। इस हमले में दो दूसरी लड़कियां भी घायल हुई। गोलीबारी के बाद मलाला को पेशावर के मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और 5 घंटे के ऑपरेशन के बाद बुलेट को शरीर से बाहर निकाला गया लेकिन इसके बाद भी वह कोमा में थी। इसके बाद में सरकार ने मलाला को ट्रीटमेंट के लिए यूनाइटेड किंगडम भेजा। जहां 17 अक्टूबर 2012 को वह कोमा से बाहर आ गई लेकिन उनकी सुनने की शक्ति चली गई। 2 फरवरी 2013 तक उनके पांच ऑपरेशन हुए इसके बाद वह पूरी तरह ठीक हो पाई। इस घटना की जानकारी पूरे विश्व में फैल गई और हर जगह से मलाला को सहानुभूति मिली। पाकिस्तान में तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और लगभग 2 मिलियन लोगों ने राइट टू एजुकेशन मोमेंट पर हस्ताक्षर किए। इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी मलाला के पिता ने देश छोड़ने से मना कर दिया और तालिबान के खिलाफ आवाज उठाई कुछ समय बाद मलाला 2013 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ सेकंड से मिली और इसी वर्ष उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी में भाषण दिया। उसी वर्ष बराक ओबामा और उनके परिवार से मिली।

12 जुलाई 2013 को यूनाइटेड नेशन ने मलाला के 16 वे जन्मदिन पर मलाला दिवस मनाने की घोषणा की। 10 अक्टूबर 2014 को मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया और यह अवार्ड पाने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्सियत बनी। इसके बाद उनके नाम पर अनेकों किताब छपी। जिसमें से आई एम मलाला बहुत प्रसिद्ध हुई।

उन्हें विश्वभर में अलग-अलग देशों से आप को पुरस्कार और धनराशि मिली जिसे उन्होंने मलाला फाउंडेशन में लगा दिया। यह थी मलाला यूसुफजई की कहानी जो अपनी बहादुरी और अपने अदम्य साहस के कारण पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई।

अन्य उपयोगी लेख: