याद हैं मुझे आज भी उसके आखिरी अल्फ़ाज़…
जी सको तो जी लेना … वरना मर जाओ … तो बेहतर है…
सोचता हूँ …कभी तेरे दिल में उतर के देख लूं…कौन है ??
तेरे दिल में ??….जो मुझे बसने नहीं देता…..!!
तकिये क़े नीचे दबा क़े रखे हैँ तुम्हारे ख़याल..एक तेरा अक्स,
एक तेरा इश्क़ ,ढेरोँ सवाल और तेरा इंतज़ार
तेरा और मेरा इतना ही किस्सा हैं,
तू मेरे दर्द का एक अहम हिस्सा हैं.
तेरे बाद खुद को इतना तनहा पाया ….
जैसे लोग हमें दफना के चले गए हो !!
अब इश्क ☝ भी करो तो ज़ात पूछकर करना, ☝
यारो मज़हबी झगड़ो में मोहब्बत हार ☝ जाती है…
एक शख्स है ज़िन्दगी जैसा.. और वो भी ज़िन्दगी में नहीं…!!
हँसते रहने की आदत भी कितनी महँगी पड़ी हमें…
छोड़ गया वो ये सोच कर कि…हम दूर रह कर भी खुश हैं
वही रिश्ता, वही नाता, वही मैँ और वही तुम,
बस अब वक्त ना रहा तेरे पास इजहार-ए-मोहब्बत के लिए
इस दुनिया के लोग भी कितने अज़ीब हैं …
सारे खिलौने छोड़ कर जज़्बातों से खेलते हैं….
तेरी आरज़ू मेरा ख्वाब है, जिसका रास्ता बहुत खराब है,
मेरे ज़ख्म का अंदाज़ा ना लगा, दिल का हर पन्ना दर्द की किताब है।
उस मोड़ से शुरू करनी है फिर से जिंदगी,
जहाँ सारा शहर अपना था और तुम अजनबी…