होठों की हँसी को ना समझ हक़ीक़त-ए-जिंदगी,
दिल में उतर के देख हम कितने उदास है..


वो जो “अपना” था “किसी” और का “क्यों” है,
ऐसी दुनिया है तो ये “दुनिया” क्यों है….


अब भी ताज़ा हैं जख्म सिने में … बिन तेरे क्या रखा हैं जीने में…
हम तो जिन्दा हैं तेरा साथ पाने को …. वर्ना देर नहीं लगती हैं जहर पीने में !!


जिस्म से होने वाली मुहब्बत का इज़हार आसान होता है…
रुह से हुई मुहब्बत को समझाने में ज़िन्दगी गुज़र जाती है…..


तुम्हारे बाद मेरा कौन बनेगा हमदर्द..
मैंने अपने भी खो दिए.. तुझे पाने की ज़िद में….



सुना था मोहब्बत मिलती है मोहब्बत के बदले,
हमारी बारी आई तो, रिवाज ही बदल गया

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रूठेंगे तुमसे तो इस कदर की,तुम्हारी आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी…



निकाल दिया उसने हमें अपनी ज़िन्दगी से भीगे कागज़ की तरह
ना लिखने के काबिल छोड़ा ना जलने के


काश की उसको हम बचपन मे ही मांग लेते,क्योंकि
बचपन में हर चीज मिल जाती थी तब दो आँसू बहाने से


कुछ अलग करना है तो दोस्तों वफ़ा करो …
वरना मजबूरी का नाम लेकर बेवफाई तो सभी करते हैं।


तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन,
जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा


हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब हैं,
हाथ के अन्दर हैं पर काबू से बाहर.


मैंने पूछा उनसे, भुला दिया मुझको कैसे..?
चुटकियाँ बजा के वो बोली…ऐसे, ऐसे, ऐसे