ना संघर्ष ना तकलीफ तो क्या मजा है जीने में
बड़े बड़े तूफान थम जाते हैं जब आग लगी हो सीने में
मैं बात करने जा रहा हूं होंडा मोटर कंपनी के फाउंडर Soichiro Honda की। इन्होंने अपनी मेहनत, लगन और सोच के दम पर एक ऐसी कंपनी खड़ा कर दी जो कई दशकों से मोटरसाइकिल मैनुफैक्चरिंग के क्षेत्र में अपना कब्जा जमाएं हुए हैं। इसके अलावा ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग में इस कंपनी को आठवां स्थान प्राप्त है। आज इस कंपनी में लाखों लोग काम करते हैं। कंपनी अरबों-खरबों रुपए कमाती है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस कंपनी की शुरुआत एक छोटे से गैराज से हुई थी।
Soichiro Honda के संघर्ष से लेकर सफलता तक के सफर को शुरू से जानते हैं। Soichiro Honda का जन्म 17 नंबर 1906 को जापान के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम gheri honda था जो एक छोटे से लोहार थे साथ ही साथ पुरानी टूटी फूटी साइकिल को खरीद कर उसे रिपेयरिंग करने के बाद बेचने का काम करते थे। honda को भी शुरू से ही औजारों से खेलने का बहुत शौक था और वह भी अपने पिता के उन कामों में हाथ बटाते थे। घर के माहौल को देखते हुए honda को पढ़ाई लिखाई बिल्कुल भी पसंद नहीं थी और इसीलिए उन्होंने 1922 में करीब 16 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने एक न्यूज़पेपर में art socai नाम की एक कार कंपनी में मैकेनिक की जॉब का ऑफर देखा और उस जॉब के लिए टोक्यो चले गए। टोक्यो पहुंचने के बाद उन्हें कंपनी में तो ले लिया गया लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें सिर्फ साफ-सफाई का ही काम दिया गया। वह उस छोटी सी कंपनी में सबसे छोटी कम उम्र के एंप्लोई थे लेकिन Honda ने सुकई कार कंपनी के मालिक से रिक्वेस्ट की कि उन्हें मैकेनिक का काम सीखने दें और उनकी रिक्वेस्ट को मानते हुए कंपनी के मालिक ने होंडा को दूसरे ब्रांच में भेज दिया जहां रात को रेसिंग कार तैयार किया जाता था।
होंडा ने अपनी लगन और मेहनत से बहुत जल्दी काम सीख लिया और अगले कुछ ही महीनों में एक अच्छे मैकेनिक बन कर उभरे। 23 नंबर 1924 को Socai कंपनी की कार ने पांचवी जापान कार चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और सभी कारों को पीछे छोड़ते हुए रेस में फर्स्ट आई। Honda उस रेस में जीतने वाले कार के मैकेनिक के तौर पर कार्य कर रहे थे। इस जीतके साथ Socai कार टोक्यो की सबसे पसंदीदा कार बन गई। इसके बाद उस कंपनी की कई ब्रांच खोली गई। उन ब्रांच में से एक ब्रांच को संभालने की जिम्मेदारी 21 साल के होंडा को दी गई।
1928 में होंडा ने Socai कंपनी छोड़ दी और घर वापस आ गए जहां उन्होंने खुद का बिजनेस खोला और मैकेनिक का काम करने लगे। कुछ दिनों तक मैकेनिक का काम करने के बाद उन्होंने बड़ी कंपनियों के लिए सस्ते और टिकाऊ पिस्टन रिंग्स बनाने का काम स्टार्ट किया और अपना सब कुछ लगा कर tociki नाम की एक कंपनी बनाई और एक्सपेरिमेंट शुरू कर दिए। उन्होंने अपने बनाए हुए पिस्टन को बेचने के लिए बड़ी बड़ी कंपनी से संपर्क किया और जल्दी उन्हें Toyota कंपनी को पिस्टन रिंग सप्लाई करने का कांटेक्ट भी मिल गया लेकिन उसी बीच एक रेस के दौरान होंडा का एक्सीडेंट हो गया और वह बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए। जिसके बाद उन्हें पूरे 3 महीने अस्पताल में बिताना पड़ा अस्पताल में रहते हुए उन्हें पता चला उनकी बनाई हुई पिस्टन की क्वालिटी पैमाने के हिसाब से पास नहीं हो सकी और उन्होंने टोयोटा जैसी बड़ी कंपनी का कांटेक्ट भी खो दिया।
Honda की लाइफ में सबकुछ उनके खिलाफ चल रहा था उनके जीवन की पूरी कमाई डूब चुकी थी लेकिन उसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और पिस्टन की क्वालिटी को इंप्रूव करने के लिए बहुत सारी कंपनियों के मालिक से मिले लेकिन तभी फिर से उन पर एक बहुत ही बड़ी आपदा पड़ी। 1944 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय अमेरिकी B29 हमले में उनकी फैक्ट्री पूरी तरह से जल गई। इस घटना ने honda को को हिलाकर रख दिया लेकिन दोस्तों
जब आंखों में अरमान लिया
मंजिल को अपना मान लिया
है मुश्किल क्या आसान है क्या
जब ठान लिया तो ठान लिया
युद्ध खत्म होने के बाद Honda ने अपने कंपनी के अवशेषों को 450000 Yen में बेच दिया और 1946 में उन पैसों का उपयोग करते हुए हौंडा टेक्निकल रिसर्च इंस्टिट्यूट खोला। युद्ध में हारने के बाद जापान को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था और उनकी पूरी इकोनॉमी गिर चुकी थी। लोग पैदल या साइकिल से चलने पर मजबूर हो गए थे। इन सभी प्रॉब्लम्स को देखते हुए honda के दिमाग में एक आइडिया आया और उन्होंने एक छोटा इंजन बनाकर उसे साइकिल से जोड़ दिया।
Honda का यह कांसेप्ट लोगों को बहुत पसंद आया और लोगों ने उनके द्वारा बनाई गई इस बाइक को खरीदना शुरू कर दिया। बस यही से हौंडा कि सफलता शुरू हो गई उन्होंने इस बाइक का नाम chuchu दिया जिसकी कीमत करीब 1500 रुपए थी। 1949 में उन्होंने अपनी कंपनी का नाम होंडा टेक्निकल रिसर्च इंस्टिट्यूट से बदलकर होंडा मोटर कंपनी रख दिया और फिर उसी साल honda ने टू स्ट्रोक इंजन की बाइक भी निकाली उसके बाद से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और Soichiro की Honda कंपनी 1961 में हर महीने 1 लाख मोटरसाइकिल का उत्पादन करने लगी और 1968 में कंपनी के हर महीने का उत्पादन बढ़कर 10 लाख मोटरसाइकिल हो गई।
कुछ सालों के बाद जापान की अर्थव्यवस्था सुधरी और तब उन्होंने फोर व्हीलर में भी अपना कदम रख दिया और वहां भी पूरी तरह छा गया। होंडा कंपनी के सफल होने का एक मुख्य कारण यह भी था Soichiro खुद मजदूरों के साथ मिलकर काम करते थे और छोटे कर्मचारियों को भी बड़े अधिकारियों की तरह सम्मान देते थे। आखिरकार अपार सफलता के बाद 5 अगस्त 1993 को Soichiro हीरो होंडा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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