जिस भी कार्य को करने का लक्ष्य निर्धारित करें, उसे इस रूप में करें कि इससे पहले उस कार्य को कोई भी उस कार्य को उस रूप में न कर पाया हो.


ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को जीवन में ऐसा एक सुअवसर जरुर देता है, जिसका लाभ उठाकर वह धन, वैभव और सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकता है !


क्रोध, घृणा, अहम्, मोह, आसक्ति ऐसे भाव है जो मनुष्य की सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर देते है और वह खुद अपना विनाश कर लेता है ! इस विनाश से बचने के लिए मनुष्य को आत्ममंथन करना चाहिए !


अपने आत्मबोध द्वारा अपने कार्य का स्तर अधिक से अधिक ऊँचा करें, आपको अवश्य सफलता प्राप्त होगी.


आप अपने सबसे बड़े गुरु व निर्देशक है ! पहले आप अन्दर मजबूती लाइए ! अपने विचारो को दृढ़ कीजिए !


आप मानसिक तौर पर कितने भी सशक्त, संतुलित एवम् विचारवान क्यों न हों, यदि आप में तुरंत निर्णय लेने कि क्षमता नहीं तो आप कभी सफल नहीं हो सकते.

https://desibabu.in/wp-admin/options-general.php?page=ad-inserter.php#tab-2

निराशा हमारी प्रसन्नता, सुख और शांति को ही नष्ट नहीं करती, वह हमारे उन संकल्पों को भी नष्ट कर डालती है जो हमने कुछ सत्कर्मो को करने के लिए किए थे !


बच्चों को सिखाएँ कि वे प्रत्येक स्थान पर सौन्दर्य को खोजें.


जिस प्रकार अलमस्त हाथी पर काबू पाने के लिए महावत अंकुश का प्रयोग करता है, उसी प्रकार को अपनी दूषित भावनाओं पर काबू पाने के लिए आत्मसंयम रूपी अंकुश का इस्तेमाल करना चाहिए !


अपने अन्दर सिंहत्व की शक्ति को जगाइए. इस शक्ति के जागने के बाद कोई ऐसा कार्य नहीं रह जाता जो आपकी शक्ति के बहत हो.


अपने इरादे मजबूत रखें, आपके मार्ग की सभी कठिनाइयाँ दूर होती चली जाएँगी.


समस्त दिशाओं में विजयी होने के लिए हमें अपने मन से सभी विरोधात्मक विचारों ईर्ष्या, द्वेष, जलन व प्रतिकार की भावनाओं को एकदम दूर रखना होगा.


जो दूसरों के जीवन में सहायक होता है, वह जीवन में सर्वोत्तम परिणाम बटोर लेता है.


आपके बाहर कोई ऐसी शक्ति नहीं, जो आपकी कामनाओं की पूर्ति कर सके. यह शक्ति केवल आपकी आत्मा में ही है, कहीं बाहर नहीं.


व्यक्ति के स्वभाव पर उसका भविष्य निर्भर करता है !


उन्नति के लिए आत्म – संयम की आवश्यकता है. बिना आत्म – संयम के कोई भी मनुष्य न तो सफल हो सकता है, न उन्नति कर सकता है.