“सत्यजीत रे की जीवनी” (Biography of Satyajit Ray)

सत्यजीत रे एक भारतीय फिल्म निर्माता, पटकथा लेखक, संगीत संगीतकार, ग्राफिक कलाकार, गीतकार और लेखक थे. वह 20 वी शताब्दी में अपनी महानतम फिल्म निर्माणों के लिये जाने जाते है. उनका परिवार कला और साहित्य में रूचि रखता था। 1955 में, उन्होंने बंगाली  ‘पाथेर पांचाली’ से अपने करियर की शुरुआत की। उसके बाद, उन्होंने कई फिल्मो में पटकथा, निर्माता के रूप में काम किया जैसे जलसाघर, महापुरुष, अपूर संसार, तीन कन्या, शाखा प्रशाखा, कंचनजंघा, नायक और बाला। उन्होंने 36 फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फीचर फिल्में, वृत्तचित्र और शॉर्ट्स शामिल हैं। वह एक फिक्शन लेखक, प्रकाशक, चित्रकार, सुलेखक, संगीत संगीतकार, ग्राफिक डिजाइनर और फिल्म समीक्षक भी थे।

उन्होंने बहोत सी लघु कथाये और उपन्यास और बच्चो पर आधारित किताबे भी लिखी है. उन्होंने फ़िल्मी करियर में कई  पुरस्कार प्राप्त किये , जिसमे दादासाहेब फालके पुरस्कार, 32 इंडियन नेशनल फिल्म अवार्ड और कुछ इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड शामिल है. 2004 में, उन्हें को बीबीसी के अब तक के सबसे महान बंगाली पोल में 13 वें स्थान पर रखा गया।

व्यक्तिगत जीवन:-

सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921ko कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत में हुआ था. उनके पिता का नाम सुकुमार था जब सत्यजीत तीन साल के थे तब उनके पिता सुकुमार राय का निधन हो गया था। उनकी माता का नाम सुप्रभा राय था। सत्यजीत के दादा उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी लेखक, चित्रकार, दार्शनिक, प्रकाशक , अपेशेवर खगोलशास्त्री और ब्राह्म समाज के नेता थे। उन्होंने गवर्नमेंट हाई स्कूल बल्लीगुंग, कलकत्ता से शुरूआती पढाई पूर्ण की। उसके बाद, उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से अर्थशास्त्र की डिग्री ली। उनकी माता ने आग्रह किया कि वह गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में  अपनी आगे पढाई करे। सत्यजित राय कलकत्ता को छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन अपनी माँ के आग्रह से वह शान्तिनिकेतन चले गए।

सत्यजीत शान्तिनिकेतन की पूर्वी कला से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने प्रसिद्ध पेंटर नंदलाल बोस और बेनोड़े बहरी मुखर्जी से काफी कुछ सिखा. बाद में उन्होंने मुखर्जी पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द इनर ऑय’ बनाई. भारतीय कला को पहचानने में अजंता, एल्लोरा और एलीफेंटा ने उनकी काफी सहायता की. 1943 में, उन्होंने ब्रिटिश विज्ञापन अभिकरण डी. जे. केमर में नौकरी करना शुरू किया। उन्हें महीने के 80 रुपये मिलते थे. उन्हें विसुअल डिजाईन काफी पसंद था लेकिन फर्म में ब्रिटिश और भारतीय कर्मचारियों के बीच हमेशा कुछ ना कुछ मतभेद रहता था. 1943 में, वह डी. के. गुप्ता द्वारा स्थापित सिग्नेट प्रेस के साथ भी काम करने लगे। गुप्ता ने उन्हें  प्रेस में छपने वाली नई किताबों के मुखपृष्ठ रचने को कहा और पूरी कलात्मक मुक्ति दी।सत्यजीत  ने बहुत किताबों के मुखपृष्ठ बनाए, जिनमें जिम कार्बेट की मैन-ईटर्स ऑफ़ कुमाऊँ (Man-eaters of Kumaon, कुमाऊँ के नरभक्षी) और जवाहर लाल नेहरु की डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया (Discovery of India, भारत की खोज) शामिल हैं।उन्होंने पथेर पांचाली के चिल्ड्रेन वर्जन पर भी काम किया है, जो की बिभूतिभूषण बनद्योपाध्याय का बंगाली उपन्यास है. वे किताबो के कवर को डिजाईन करने के साथ-साथ उसपर चित्रकारी भी करते थे, उनके कामो की काफी प्रशंसा की जाती थी.

करियर:-

1955 में, उन्होंने फिल्म ‘ पाथेर पांचाली’ से एक पठकथा के रूप में अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की। उसके बाद, उन्होंने बतौर निर्देशक, निर्माता और लेखक के रूप में कई फिल्मे की जैसे अपराजितो, पारश पत्थर,  देवी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महानगर, महापुरुष, चिड़ियाखाना, गुपी गाइन बाघा बाइन, सीमाबद्ध, द इनर आइ, प्रतिद्वंद्वी, सोनार केल्ला, जन अरण्य, हीरक राजार देशे, सुकुमार राय, शाखा प्रशाखा, गन्तुक, चिनमूल, अभियान, सिक्किम, अशनि संकेत, शतरंज के खिलाड़ी, पिकूर डायरी, टार्गेट और बॉम्बईयर बॉम्बेटे। उन्होंने कई अंग्रेजी फिल्मो में भी अपना योगदान दिया है. सत्यजित राय मानते थे कि कथानक लिखना निर्देशन का अभिन्न अंग है। यह एक कारण है जिसकी वजह से उन्होंने प्रारंभ में बांग्ला के अतिरिक्त किसी भी भाषा में फ़िल्म नहीं बनाई।  उनकी कला निर्देशक बंसी चन्द्रगुप्ता की दृष्टि भी राय की तरह ही पैनी थी। शुरुआती फ़िल्मों पर इनका प्रभाव इतना महत्त्वपूर्ण था कि राय कथानक पहले अंग्रेजी में लिखते थे ताकि बांग्ला न जानने वाले  उसे समझ सकें।

फिल्मो के अलावा, उन्होंने  बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की  ‘गुप्तचर फेलुदा’  और ‘वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु’। इन्होंने कई लघु-कथाएँ भी लिखीं, जो बारह-बारह कहानियों के संकलन में प्रकाशित होती थीं। उन्हें  पहेलियों और बहुअर्थी शब्दों के खेल से बहुत प्रेम था। इसे इनकी कहानियों में भी देखा जा सकता है। फेसर शंकु की विज्ञानकथाएँ एक दैनन्दिनी के रूप में हैं जो शंकु के अचानक गायब हो जाने के बाद मिलती है। राय ने इन कहानियों में अज्ञात और रोमांचक तत्वों को भीतर तक टटोला है, जो उनकी फ़िल्मों में नहीं देखने को मिलता है।इनकी लगभग सभी कहानियाँ हिन्दी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुकी हैं।

उनके सभी कथानक भी बांग्ला भाषा में साहित्यिक पत्रिका एकशान में प्रकाशित हो चुके हैं।982 में , उन्होंने एक आत्मकथा ‘जखन छोटो छिलम’ लिखी।  उसके बाद, उन्होंने फ़िल्मों के विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से प्रमुख है (Our Films, Their Films, हमारी फ़िल्में, उनकी फ़िल्में)। 1976 में प्रकाशित इस पुस्तक में उनकी लिखी आलोचनाओं का संकलन है।

इस प्रकार, उन्होंने बंगाली सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ी है।वह भारत और विश्वभर के बंगाली समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं।1995 में भारत सरकार ने फ़िल्मों से सम्बन्धित अध्ययन के लिए सत्यजित राय फ़िल्म एवं टेलिविज़न संस्थान की स्थापना की। लंदन फ़िल्मोत्सव में नियमित रूप से एक ऐसे निर्देशक को सत्यजित राय पुरस्कार दिया जाता है जिसने पहली फ़िल्म में ही “राय की दृष्टि की कला, संवेदना और मानवता” को अपनाया हो।

पुरुस्कार और सम्मान:-

सत्यजीत रे को अपने करियर में फिल्मो अपना योगदान देने के लिए कई पुरुस्कार व सम्मान प्राप्त हुए है जिनमे 32 नेशनल फिल्म अवार्ड  और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड भी शामिल है. इसके अलावा, उन्हें कई पुरुस्कार प्राप्त है जेसे पद्म भूषण, रमन मैगसेसे पुरस्कार, स्टार ऑफ यूगोस्लाविया, पद्म श्री, विशेष पुरस्कार, डी. लिट., विद्यासागर पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, ऑस्कर और अन्य फिल्म पुरस्कार।

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