एक गांव में एक व्यापारी रहता था क्या वह पैसे उधार में देखकर व्याज वसूल करता था।यही उसका व्यापार था। वह बहुत ही बड़ा मूर्ख और दयाहिन् व्यक्ति था। एक बार जो उससे क़र्ज़ लेता वह सारा जिंदगी कर्ज़दार ही रह जाता। वह बहुत ज्यादा ब्याज वसूलता था।

उसके ब्याज को चुकाना बड़ी मुश्किल काम था। उसके व्याज दर बहुत ज्यादा थी। गांव में जो भी मुश्किल में रहता वह व्यापारी के पास अपने खेत, सोना अथवा धान गिरवी रखकर उधार लेता।

लालची व्यापारी और चलने वाली झोपड़ी की कहानी

ऐसा कुछ ही सालों में बहुत से लोगो की जायदाद उसने अपने नाम कर ली। लोगों को भी पता था पर मजबूरी में उससे उधार लेते थे|

उसी गांव में व्यापारी के घर के सामने एक गरीब आदमी हरि अपनी पत्नी के साथ पुरानी झोपड़ी में रहता था। अचानक उस गांव में अकाल पड़ गया। उसको पैसे की जरूरत पड़ी। उसने बस यही निश्चय कर रखा था की किसी भी हाल में व्यापारी से उधार नहीं लेना। एक बार जो उसने उधार ले लिया तो कभी नहीं चूका पाएंगे।

काफी दिन बीत गए मगर हरि के मुश्किल हालात ठीक नहीं हुए तो थक हारकर आखिर उसे व्यापारी से उधार लेना ही पड़ा। वह उस व्यापारी के पास गया और बोला में आपसे उधार लेने आया हूं। व्यापारी ने मौके की नजाकत को समझते हुए कहा – मुझे तुम्हारी बात समझ में आ रही है पर तुम तो जानते ही हो की हमारे गांव के अकाल के कारण मेरे पैसे भी ख़त्म हो गए। तुम बहुत दिनों से मेरे पड़ोस में रह रहे हो। मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूं इसीलिए मैं तुम्हें उधार दे रहा हूं लेकिन इसके लिए तुम्हें अपना घर गिरवी रखना पड़ेगा। 3 महीने में तुम्हें उधर चुकाना पड़ेगा नहीं तो मैं तुम्हारे घर पर कब्ज़ा कर लूंगा।

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व्यापारी को हरि के बारे में पता था की वह पैसे नहीं लौटा पाएगा यह सोच कर उसने हरि को उधार दिया और काफी सारी शर्त बतायीं।

हरि ने मदद के लिए व्यापारी को धन्यवाद् दिया और कहा की मैं आपका उधर 3 महीने में चूका दूंगा।

व्यापारी से पैसे लेकर हरि अपने घर की ओर लौटा। उसके घर के सामने एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। हरि हर दिन उस पेड़ को पानी देता था। अकाल के बावजूद भी हरि उस पेड़ को रोजाना पानी डालता था।

उस पेड़ पर बहुत ही मायावी जिंन्न भी रहता था। हरि जो पानी पेड़ को हर दिन डालता उस पानी को पीकर जिंन्न अपनी प्यास बुझाता था। उसे हरि से बहुत ही लगाव हो गया था।

ऐसे 3 महीने बीत गए मगर हरि उस व्यापारी का उधार नहीं चुका पाया है। 3 महीने बाद व्यापारी हरि के घर आया और बोला – जैसे कि मैंने पहले ही तुम्हे कहा था। अब मैं तुम्हारा घर जब्त कर रहा हूं। हरी ने कहा – यह बात सही है कि मैंने आपका उधार नहीं चुकाया, लेकिन मेरे दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं इसीलिए मुझे थोड़े दिन और दीजिए मैं जरुर आपको उधार चुका दूंगा। मुझ पर विश्वास कीजिए।
व्यापारी ने कहा – ठीक है तुम समय मांग रहे हो इसलिए मैं मना नहीं कर सकता। तुम दिन भर इस घर में नहीं रह सकते हो। रात को सो कर दिन में मुझे वापस करना पड़ेगा। अगर तुम्हें ठीक लगता है तो रहो नहीं तो तुम्हारी इच्छा।

हरि के पास और कोई चारा नहीं था। उसकी बीवी को तकलीफ ना हो इसलिए उसने व्यापारी की शर्तों को माना। उस दिन सारी रात हरि और उसकी पत्नी दुख के साथ जागते रहे। पेड़ पर बैठा जिंन्न ये सब देख कर बड़ा दुखी हुआ और उसने व्यापारी को सबक सिखाने की ठानी।

यही सोचकर जिंन्न ने एक थैले में खूब सारा धन भरा और पेड़ से नीचे गिराया।
अगले दिन सुबह होते ही पेड़ को पानी डालने के लिए हरि वहां आया और पेड़ के नीचे उस धन को देखा। वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ और इधर उधर देखने लगा

हरी उस थैले को लेकर घर गया और अपनी पत्नी को दिखाया। उसके पत्नी ने कहा आज से हमारे सारे दुःख दूर हो गए। हम उस व्यापारी को धन देकर अपने घर को वापस मांग लेंगे।

हरी और उसकी पत्नी दोनों मिलकर व्यापारी के घर गए। उन्हें देख कर व्यापारी ने कहा- क्या हुआ हरि बीवी को साथ लेकर आए हो क्या बात है?

हरि बोला मैं आपकी उधार चुकाने आया हूं। पैसे लेकर मेरा घर मुझे वापस कर दीजिए।

हरि के पास वो पैसा देख कर व्यापारी को जलन हुई। उसने सोचा इसके पास इतना धन इतने काम समय में कैसे आया?? जरूर कुछ बात हैं और उस घर वो वापस देने के उसे बहुत गुस्सा आया। और उसने कहा की कल ही तुम्हारा घर मेरा हो गया। अब तुम जितना भी पैसा दे दो में तुम्हे तुम्हारा घर वापस नहीं दूंगा।

इस पर हरि ने कहा की मेरा घर लेकर आप क्या करेंगे? क्या आप जहा जायेंगे मेरा घर भी लेकर जायेंगे? उसमें आप एक दिन भी नहीं रह सकेंगे।

व्यापारी ने कहा: मैं वह घर बिलकुल भी नहीं दूंगा। जैसा की तुम्हे कहा की मैं जहाँ भी जाऊंगा उस घर को अपने साथ ही ले जाऊंगा।

पेड़ पर बैठा जिंन्न ये सब देखा रहा था और उसने सोचा किसी तरह व्यापारी उस घर को वापस करें ऐसा कुछ करना होगा।

व्यापारी हस्ते हुए अपने घर की और चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद सेठ को लगा की कोई उसका पीछा कर रहा हैं। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो वो घर उसका पीछा कर रहा था। व्यापारी आश्चर्यचकित हुआ। वह डर गया और दौड़ाते हुए अपने घर के अंदर गया।

वो घर भी उसका पीछा करते करते उसके घर के अंदर गया। ऐसा करते करते काफी टाइम बीत गया। व्यापारी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अपनी थकान मिटाने के लिए व्यापारी एक दिन उस पेड़ की नीचे आकर बैठा। उस पेड़ से पत्थर की बरसात होने लगी। ऊपर से क्या गिर रहा है ये देखने के लिए व्यापारी से ऊपर देखा। और वह जिंन्न उसे बिना दिखे उस पर हस रहा था। पर व्यापारी को कोई नहीं दिखा। उसने सोचा हरि के पास कोई जादुई शक्ति हैं जिसकी मदद से वो ये सब कर रहा हैं।

ऐसे काफी दिन बीत गए पर वो घर व्यापारी का पीछा नहीं छोड़ रहा था। व्यापारी का हाल -बेहाल था। सभी गांव वाले ये सब देखने के लिए व्यापारी के घर आये और चोंक गए। और उनमें से एक आदमी आया और उससे बोला की ये तो बहुत अजीब हैं तुम किसी तांत्रिक से जाकर मिलो।

व्यापारी को यह बात सही लगी। अगले दिन वो गांव से दूर जंगल में एक तांत्रिक के पास गया और उसे सारा किस्सा बताया। तांत्रिक ने अपनी आँखें बंद की और अपनी दिव्य दृष्टि से व्यापारी के दुःख का कारण जान लिया।

फिर उसने आँखें खोली और कहा तुम्हें जबरदस्ती हरि से उसका घर ले लिया। उस दिन तुमने हरि से कहा था की तुम जहा भी जाओगे घर को अपने साथ ले जाओगे। इसलिए ये घर तुम्हारे साथ ही आ रहा हैं। व्यापारी को ये बात समझ आ गयी। उसने इस बात का हल पूछा तो तांत्रिक ने कहा – तुम्हे अपने पास रखे हुए गांव वालो की जमीनों के कागज जलाने होंगे तभी तुम्हारा इस मुसीबत से पीछा छुटेगा।

व्यापारी ने तांत्रिक की बात को नकार दिया। उसके बाद उसकी तकलीफ और बढ़ गयी और वो घर व्यापारी को कई तरीको से परेशान करने लगा। एक दिन उसने खाना बनाने के लिए लकडियो को जलाया। जितना व्यापारी ने सोचा था आग उससे ज्यादा तेज हो गयी और वह घर छोड़ कर भाग गया।

एक दिन वो फल तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ा। पेड़ की डाली टूटी और वो नीचे गिर गया। ऐसे बहुत सी चीज़े उसकी साथ होने लगी। वो चैन से खाना भी नहीं खा सकता था। उसकी नींद भी उड़ गयी। इतना परेशान हो गया कि उसका दिमाग ख़राब हो गया। उसे लगा की ऐसा कुछ और दिन चला तो वो पागल हो जायेगा।

व्यापारी वापस उस तांत्रिक के पास गया और बोला स्वामी जी कृपया करके इसका कोई उपाय बताइये।

स्वामीजी बोले मैं तुम्हे पहले ही बता चुका हूँ की तुम उन सरे पत्रो को जला दो। व्यापारी को ये बात पसंद नहीं आयी लेकिन उसके पास कोई और चारा भी नहीं था। उसने सारे कागजो को जल दिया।

इसी के साथ सारे गांव वालो के कर्ज भी उतर गए।

व्यापारी का पीछा करता हुआ हरि का घर भी वापस अपने स्थान पे चला गया। व्यापारी ने भी चैन की साँस ली। तब तक इतने दिन तकलीफ मैं दिन गुज़रते हुए हरि और उसकी पत्नी भी वापस अपने घर में आकर बस गायें।

उसके बाद व्यापारी भी उस गांव के लोगो को बिना ब्याज के उधार देने लगा। हरि की इतनी सहायता किसने की ये जानने के लिए हरि भी उस तांत्रिक के पास गया। और पूछा की मेरी इतनी सहायता किसने की ये मैं यह जानना चाहता हूँ। तांत्रिक ने फिर से अपनी आँखें बंद की और हरि की किसने सहायता की ये जान लिया। उनहे हरि के घर बहार वह पेड़ और जिंन्न दिखे।

उन्होंने अपनी आँखे खोली और हरि को बताया की तुम जिस पेड़ को रोज़ पानी डालते हो उस पर एक जिंन्न भी रहता हैं उसी ने तुम्हारी मदद की हैं।

तांत्रिक की बात सुनकर हरि उस जिंन्न की धन्यवाद् करने के लिए अपने घर के पास गया और जिंन्न से कहा मित्र तुमने मेरी बहुत सहायता की हैं तुम्हरा बहुत बहुत धन्यवाद्।

जिंन्न ने हस्ते हुए कहा तुम्हारे जैसे अच्छे इंसान की कोई भी सहायता करेगा। तुम्हें अपना घर वापस मिल गया हैं। जाओ ख़ुशी से रहो।