
हवाओं से कह दो कि अपनी हद में रहे हम परों से नहीं हौसलों से उड़ान भरते हैं। यह शब्द अरुण अरुणिमा सिन्हा की जिंदगी पर बिल्कुल सटीक बैठते हैं जिन्हें चलती ट्रेन से लुटेरों ने बाहर फेंक दिया था। जिसके कारण ट्रेन से उनका एक पैर टूट चुका है। फिर भी अपने पहाड़ों से मजबूत हौसले से अरुणिमा सिन्हा दुनिया की पहली विकलांग महिला बनी है जिसने माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर विश्व कीर्तिमान बनाया है और अपने विकलांगता को अपने मजबूत होसलों के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है।
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुआ था। वह एक लंबी कद काठी की स्वस्थ लड़की थी जिसे वॉलीबॉल खेलना बहुत पसंद था। अपना और अपना देश का नाम रोशन करने का सपना उन्होंने वॉलीबॉल में देखा था। अरुणिमा सिन्हा नेशनल वॉलीबॉल प्लेयर थी। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से CISF के एग्जाम पास कर लिए थे और फिजिकल टेस्ट भी पास कर लिया था जिसकी जॉइनिंग के लिए उन्हें दिल्ली जाना था। वह लखनऊ से दिल्ली जाने वाली पद्मावती एक्सप्रेस में दिल्ली जाने के लिए बैठ गई। बीच रास्ते में कुछ लुटेरों ने अरुणिमा की सोने की चेन खींचने का प्रयास किया लेकिन अरुणिमा ने इस का जमकर विरोध किया। उन्होंने ऐसा नहीं करने दिया अपने मंसूबों पर कामयाबी ना मिलने पर उन लुटेरो ने मिलकर अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। साइड ट्रैक में अपॉजिट डायरेक्शन में दूसरी ट्रेन आ रही थी। अरुणिमा ने बताया कि गिरने के बाद मैंने उठने की कोशिश की लेकिन ट्रेन इतनी तेजी से गुजरी कि मेरे एक पैर से ट्रेन गुजर गई। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ याद नहीं। उनका पूरा शरीर खून से लतपत हो गया और वह अपना बायां पैर खो चुके थी। 4 महीने दिल्ली एम्स में इलाज चला। उन्हें खेल मंत्रालय से कंपनसेशन के रूप में 25000 देने का वादा किया गया। बाद में इसे बढ़ाकर 200000 रुपए कर दिया गया। इसके बाद रेलवे ने उन्हें नौकरी ऑफर की लेकिन उन्होंने वह नौकरी नहीं की।
इस हादसे ने उन्हें लोगों की नजरों में असहाय ही बना दिया था लेकिन वह खुद को असहाय नहीं देखना चाहती थी। लोगों की सहानुभूति उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे वह फिर से कॉन्फिडेंस भरी लाइफ जी सके। इलाज के बाद अरुणिमा को एक आर्टिफिशियल पैर लगाया गया जिससे वह दोबारा पहले जैसी ना सही लेकिन चलने फिरने लगी। जब अरुणिमा सिन्हा ने अपने साथ हुई घटना की रिपोर्ट गवर्नमेंट रेलवे पुलिस में बताई तो पुलिस ने अरुणिमा के बयानों को सही नहीं माना और कहा कि वह सुसाइड के इरादे से ट्रेन से कूदी थी। इसके बाद अरुणिमा सिन्हा ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अरुणिमा की सही ठहराते हुए रेलवे को 5 लाख देने का आदेश दिया। एम्स से छुट्टी मिलते ही वह भारत की माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बछेंद्री पाल से मिलने गई है और बचेंद्री पाल ने अरुणिमा को पर्वतारोहण की ट्रेनिंग दी। कई मुसीबतें आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की। 52 दिनों की कठिन जानलेवा चढ़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने 21 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट फतह करने के साथ ही विश्व की पहली विकलांग महिला बन गई। एवरेस्ट फतह करने के बाद भी रुके नहीं उन्होंने विश्व के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतेह करने का लक्ष्य रखा है जिनमें से कुछ पर्वतों पर तिरंगा पर आ चुकी है।
2015 में अरुणिमा को भारत के चौथे सर्वोच्य सम्मान पदम श्री से नवाजा गया है और उत्तर प्रदेश सरकार ने 2500000 रुपए चेक के रूप में उन्हें दिए हैं। वह अपने इस महान प्रयासों के साथ विकलांग बच्चों के लिए शहीद चंद्रशेखर आजाद खेल एकेडमी चलाती है। उस भयानक हादसे ने अरुणिमा की जिंदगी बदल दी। वह चाहती तो हार मान कर असहाय जिंदगी जी सकती थी लेकिन उनके हौसले और प्रयासों ने उन्हें फिर से एक नई जिंदगी दी। अरुणिमा जैसे लोग भारत की शान है और यही वे लोग हैं जो नए भारत का निर्माण करने में नीव का काम करते हैं। अरुणिमा ने अपनी जिंदगी बदल दी और अब अरुणिमा सिन्हा की कहानी हजारों लोगों की जिंदगी जिंदगी बदल रही है।
अन्य उपयोगी लेख: