नेल्सन मंडेला की जीवनी | Nelson Mandela Biography In Hindi

Nelson Mandela Biography In Hindi
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दोस्तों एक ऐसा भी समय था जब हर सुविधाएं रंग के आधार पर बंटी हुई थी। बात चाहे बस की सीट की हो या फिर सार्वजनिक जगह पर मिलने वाली किसी भी सुविधा की। हर जगह रंग के आधार पर गोरों को अच्छी और कालों को सबसे बुरी सर्विस मिलती थी। वैसे तो इसका इफेक्ट हर देश में कहीं थोड़ा कहीं कहीं ज्यादा था लेकिन दक्षिण अफ्रीका में तो हद ही हो गई। वहां की कुल आबादी के तीन चौथाई काले लोग थे और उनके देश इकोनॉमी उन्हीं के दम पर चलती थी लेकिन सारी अच्छी सुविधाएं गौरो को मिलती थी।

वैसे तो दक्षिणी अफ्रीका  रंगों को लेकर भेदभाव बहुत पहले से था लेकिन नेशनल पार्टी की सरकार ने 1948 में नियम बना दिया कि काले और गोरे लोग अलग-अलग जगह पर रहेंगे और हर सुविधाओं को उनके रंगों के हिसाब से बांट दिया गया। लेकिन बुराई पर तो हमेशा अच्छाई की जीत होती आई है। नेल्सन मंडेला के संघर्षों ने इस रंगभेद के नियम को खत्म करवा दिया। जिसके बाद सभी को समान हक मिलने लगा। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए मंडेला को अपने जीवन का लगभग 28 साल जेल में बिताना पड़ा था। मंडेला भी गांधी जी की राह पर चलने वाले इन्सान थे। उन्होंने बिना हथियार उठाए, बिना खून बहाए यह काम कर दिखाया। आइए शुरुआत से उनके बारे में जानते हैं।

नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ़्रीका, ईस्टर्न केप, म्वेज़ो गांव में हुआ था। उनकी मां का नाम नेक्यूफी नोसकेनी और पिता का नाम गेडला हेनरी था। जन्म के समय नेल्सन मंडेला का नाम उनके घर वालों ने रोलिह्लाला रखा था। जिसका मतलब शरारती होता है लेकिन स्कूल की टीचर ने उनका नाम बदलकर नेल्सन रख दिया।

मंडेला ने अपने शुरू की पढ़ाई क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से की थी। मंडेला जब 12 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी लेकिन उनके जॉइंट फैमिली ने उन्हें पिता की कमी कभी महसूस नहीं होने दी और आगे की पढ़ाई के लिए पूरी हेल्प करते रहे क्योंकि नेल्सन पूरे परिवार में एकमात्र सदस्य थे जो स्कूल गए थे। उनकी ग्रेजुएशन की पढ़ाई हेल्डटाउन कॉलेज में हुई थी। हेल्डटाउन कॉलेज स्पेशली काले लोगों के लिए बनाया गया कॉलेज था। इसी कॉलेज में मंडेला की मुलाकात ऑलिवर टाम्बो से हुई जो जीवन भर उनके दोस्त रहे और रंगभेद की लड़ाई में उनका हमेशा साथ देते रहे।

कॉलेज के समय से ही उन्होंने काले लोगों के साथ भेदभाव के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी और लोगों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से भी निकाल दिया गया था। 1944 में वह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए जिसने रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन पहले से चला रखा था। फिर 1947 में उस पार्टी के सचिव चुने गए। अब उनके साथ धीरे-धीरे करके बहुत से लोग जुड़ चुके थे और अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन 1961 में मंडेला और उनके कुछ दोस्तों के खिलाफ देशद्रोह का केस चला और उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। हालांकि बाद में उन्हें निर्दोष माना गया वह छूट गए लेकिन फिर से 5 अगस्त 1962 को उन्होंने मजदूरों को हड़ताल के लिए उकसाना के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और लगभग 2 साल तक उन पर केस चलने के बाद 12 जुलाई 1964 उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई। सजा के लिए उन्हें सबसे कड़ी सुरक्षा वाली जेल में भेजा गया लेकिन इसके बाद भी उनका हौसला कम नहीं हुआ। उन्होंने जेल में भी अश्वेत कैदियों को अपना अधिकार याद दिलाना शुरू कर दिया।

उधर दूसरी तरफ उनकी पार्टी ने भी उन्हें छुड़ाने की पूरी कोशिश की लेकिन वे भी असफल रहे और नेल्सन मंडेला पूरे 27 साल तक उस काल कोठरी में कैद रहे। आखिरकार 1989 को दक्षिण अफ्रीका में सरकार बदली और उदारवादी नेता FW क्लॉक देश के प्रेसिडेंट बने। उन्होंने नेल्सन मंडेला और उनकी पार्टी के संघर्ष को देखते हुए अश्वेत लोगों पर लगे हुए सभी प्रतिबंधों को हटा दिया और उन सभी कैदियों को छोड़ने का फैसला किया जिन पर खून खराबे जैसे बड़ी आपराधिक केसेज नहीं चल रहे थे।

इस तरह 1 फरवरी 1990 को मंडेला की जिंदगी के सामने आजादी का सूर्य उदय हुआ और वह जेल से छूट गए। उसके बाद 1994 में दक्षिण अफ्रीका में प्रेसिडेंट का चुनाव हुआ इस चुनाव में अश्वेत यानि काले लोग भी पार्टिसिपेट कर सकते थे। मंडेला ने इस चुनाव में पार्टिसिपेट किया और उनकी पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने बहुमत के साथ सरकार बनाई।

10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के सबसे पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और बचे खुचे सभी अधिकारों को गोरे और काले सभी लोगों के लिए एक बराबर कर दिया। नेल्सन मंडेला बहुत हद तक महात्मा गांधी की तरह अहिंसक मार्ग पर चलने वाले थे। उन्होंने गांधी को अपना प्रेरणा स्रोत माना था। इसी वजह से उन्हें अफ्रीकी गांधी भी कहा जाता है।

नेल्सन मंडेला को 1990 में भारत का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह दूसरे ऐसे विदेशी व्यक्ति थे जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया था। इससे पहले 1980 में यह सम्मान मदर टेरेसा को दिया गया था। उसके बाद 1993 में उन्हें पूरी दुनिया की शांति के लिए सबसे बड़े पुरस्कार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दोस्तों मंडेला जीवन भर रंगभेद के विरुद्ध लड़ते रहे और दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों को उनके अधिकार दिलाने के बाद 5 दिसंबर 2013 को 95 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए। मंडला का कहना था कि।।।।

जब कोई व्यक्ति अपने देश और लोगों की सेवा को अपने कर्तव्य की तरह समझता है तो उन्हें उस काम को करने में शांति मिलती है। मुझे लगता है कि मैंने वह कोशिश की है और इसलिए मैं शांति से अंत काल तक सो सकता हूं।

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