राजेन्द्र प्रसाद हमारे भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे, यह एक ऐसा नाम है जिन्हें परिचय की कोई आवश्यकता नही है। उनके महान कार्य और गुण हम सब के लिए प्रेरणादायक है. लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।भारत को स्वतंत्र कराने में उनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़ भाग लिया था, वह इस आन्दोलन के प्रमुख नेताओ में से एक थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाल रहे थे. उन्होंने भारत के सविंधान निर्माण में भी अपना सहयोग दिया था. देश के राष्ट्रपति होने के अलावा, उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी काम किया था. वह हिंदी भाषा के प्रेमी थे. उन्हें अंग्रेजी, हिन्दी, साहित्य, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली भाषा का पूरा ज्ञान था.

व्यक्तिगत जीवन:-

 

राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को जीरादेई, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (अब बिहार में) हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय था, वह संस्कृत एवं फारसी भाषा के विद्वान थे एवं उनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था, वह एक धर्मपरायण महिला थीं। राजेंद्र पांच भाई-बहन में सबसे छोटे थे.  का नाम वह एक कायस्थ परिवार से थे.राजेन्द्र बाबू के दादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उन्हें हथुआ रियासत की दीवानी मिल गई थी। कई सालों तक वे उस रियासत के दीवान रहे। उनके दादा जी ने जमीन खरीद ली थी. राजेन्द्र प्रसाद के पिता जमींदारी की देखभाल करते थे। 5 साल की उम्र में, राजेन्द्र बाबू ने एक मौलवी साहब से फारसी भाषा का ज्ञान लेना शुरू कर दिया था. फिर, उन्होंने छपरा के जिला स्कूल से शुरूआती पढाई पूर्ण की.  स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने के बाद, वह कोलकाता विश्वविद्यालय अध्यन से लिए चले गये, वहां उन्होंने प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया. 1915 में, उन्होने  स्वर्ण पद के साथ विधि परास्नातक (एलएलएम) की परीक्षा उर्तीण की और साथ ही, लॉ के क्षेत्र में उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की। अपनी प्रतिभा से उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले तथा बिहार-विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने पर मजबूर कर दिया था। अगर बात करे उनके वैवाहिक जीवन की तो उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी से हुआ था.

करियर:-

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राजेंद्र प्रसाद को हिंदी भाषा से बेहद लगाव था. पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते थे। 1912 में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन में, वह स्वागतकारिणी समिति के वे प्रधान मन्त्री थे। 1926 में, वह बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और 1927  में, उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक वकील के रूप में की थी. उन दिनों वह महात्मा गाँधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए। 1921 में, उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर के पद को छोड़ दिया। उन्होंने सर्चलाईट और देश जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर कई लेख लिखे थे।  1914 में बिहार और बंगाल मे बाढ आने पर उन्होंने सेवा-कार्य किया था। 1934 में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने देश को आजाद कराने में अपना मत्वपूर्ण योगदान दिया. भारत के स्वतन्त्र होने के बाद, वह भारत के पहले राष्ट्रपति बने। भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहलेउनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वह भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये। 1962 में, उन्होंने 12 साल तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश के बाद, उन्हें भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

निधन:-

अपने जीवन के आखिरी दिन, उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम में बिताये। 28 फ़रवरी 1963 में, इस महान व्यक्ति ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. वह हम सब के लिए प्रेरणादायक थे.

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