Major Dhyan Chand Biography In Hindi
Major Dhyan Chand Biography In Hindi

पहले ही मैच में तीन गोल, ओलंपिक खेलों में 35 गोल, और अंतरराष्ट्रीय मैचों में करीब 400 गोल. कुल मिलाकर किए गए एक हजार से ज्यादा गोल का आंकड़ा मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहलाने के लिए काफी है. अगर अभी भी उनके खेल को लेकर कोई शक है तो मैं उनके करियर को लेकर कुछ घटनाएं शेयर करने जा रहा हूं जिससे आपको यह पता चल जाएगा कि ध्यानचंद की तरह हॉकी का खिलाड़ी उनके बाद ना तो कोई हुआ है और शायद ना ही कोई होगा.

गेंद इस तरह उनके हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी कि उनके अगेंस्ट खेल रहे खिलाड़ियों को अक्सर शक होता था वह किसी स्पेशल स्टिक से खेल रहे हैं. यहां तक कि एक बार हॉलैंड में खेलते समय उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की शक की वजह से उनकी हॉकी स्टिक को भी तोड़ कर देखा गया. ध्यानचंद ने अपने अद्भुत खेल से जर्मनी के तानाशाह हिटलर से लेकर महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को अपने खेल का दीवाना बना दिया था.

बात है 4 अगस्त 1936 को खेले गए ओलंपिक खेलों के फाइनल की जिसमें भारत और जर्मनी आमने-सामने थी. मैच जर्मनी में खेला जा रहा था. पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए वहां मौजूद थे. मैच शुरू हुआ और पहले हाफ तक मुकाबला बहुत कड़ा रहा लेकिन भारत 1-0 से बढ़त बनाने में कामयाब रहा. उसके बाद सेकंड हाफ के खेल से पहले जो हुआ वह चौंका देने वाला था. लोग कहते हैं कि जर्मनी के विशेषज्ञों ने पिच को जरूरत से ज्यादा गीला करा दिया ताकि सस्ते जूते पहने हुए भारतीय खिलाड़ी को दौड़ने और गोल करने मे दिक्कत आए और उन्हें प्रॉब्लम हो जिससे वह मैच हार जाए. लेकिन पिच को देखकर मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते निकाल दिए. जिससे वह अच्छी तरह दौड़ सकते थे उसके बाद वह और उनकी टीम ने एक के बाद एक 7 गोल किए और मुकाबला अपने नाम कर लिया. अपनी टीम की शर्मनाक हार से बौखला कर तानाशाह हिटलर खेल के बीच में ही मैदान छोड़कर चले गए.

अगले दिन ध्यानचंद के अद्भुत खेल को देखते हुए हिटलर ने उन्हें अपने ऑफिस बुलाया और उन्हें पूरी तरह ऊपर से नीचे तक देखा. उस समय ध्यानचंद ने जूते फटे हुए पहन रखे थे. हिटलर ने उनके जूते की तरफ इशारा करते हुए उन्हें एक अच्छी नौकरी का लालच दिया और जर्मनी की टीम से खेलने को कहा. लेकिन भारत के इस सच्चे देशभक्त ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा और जर्मनी के जिद्दी तानाशाह हिटलर को तुरंत मना कर के वापस आ गए. भारत के अलावा भी दुनिया के बहुत सारे दिग्गजों ने ध्यानचंद की प्रतिभा का लोहा माना है. क्रिकेट के महानायक डॉन ब्रैडमैन ने ध्यानचंद के सम्मान में कहा की वह क्रिकेट के रनों की भांति गोल बनाते हैं

मुझे उम्मीद है कि आप भी जान गए होंगे ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है. आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ पर्सनल बातें.

ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 प्रयाग उत्तर प्रदेश में हुआ जिसको अब इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है. उनके पिता सेना में सिपाही थे. बचपन में ध्यानचंद को हॉकी के खेल में कोई खास रुचि नहीं थी. उन्हें रेसलिंग बहुत पसंद थी. उन्होंने पास के ही एक साधारण से स्कूल से पढ़ाई पूरी की और उसके बाद 1922 में 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए. सेना में भर्ती होने के बाद कि उनका इंटरेस्ट हॉकी में बढ़ने लगा और उनके साथ के मेजर तिवारी ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे उनमें हॉकी का जैसे जुनून सा हो गया और वह अपनी ड्यूटी के बाद चांदनी रातों में ही हॉकी की प्रेक्टिस करते रहते थे. उनका नाम अभी भी ध्यान सिंह था लेकिन चांदनी रात में प्रैक्टिस करते यह देख उनके साथ के सिपाहियों ने उनके नाम के बीच में चंद्र लगा दिया और वह चंद्र धीरे-धीरे बदलकर चंदर हो गया इसलिए ध्यान सिंह ध्यानचंद बन गए. उन्होंने अपने जुनून और प्रेक्टिस के बल पर अपने आप को बहुत बड़ा खिलाड़ी बना लिया और सेना की तरफ से खेलते हुए अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देते गए. जिससे सेना में उनकी लगातार प्रमोशन होती रही और वह एक सिपाही से मेजर बन गए. 1926 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय मैच में उतारा गया. इंग्लैंड के खिलाफ अपना पहला मैच खेला था.

https://desibabu.in/wp-admin/options-general.php?page=ad-inserter.php#tab-2

1927 में लंदन पोस्ट स्टोन फेस्टिवल में उन्होंने ब्रिटिश हॉकी टीम के खिलाफ 10 मैचों में 72 में से 36 गोल किए. 1928 में नीदरलैंड के समर ओलंपिक में खेलते हुए उन्होंने तीन में से दो गोल दागे भारत ने यह मैच 3-0 से जीतकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. 1932 लॉस एंजलिस समर ओलंपिक में तो हद ही हो गई. भारत ने अमेरिकी टीम को धूल चटाकर गोल्ड मेडल जीता. इस साल ध्यानचंद 338 में से 133 गोल अकेले करे थे. वह तीन बार ओलंपिक के गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं.

1948 तक 42 साल की उम्र तक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मैचों में अपना योगदान दिया और फिर वह रिटायर हो गए. रिटायर होने के बाद भी वह आर्मी में होने वाले मैच में अपना योग योगदान देते रहें. मेजर ध्यान सिंह को वर्ष 1956 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम विभूषण से सम्मानित किया गया. ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी को एक नई पहचान दी और पूरी दुनिया में एक ऐसी छाप छोड़ी की अब शायद ही यह किसी और खिलाड़ी के लिए संभव होगा.

उनके बर्थडे 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रुप में मनाया जाता है लेकिन इस महान खिलाड़ी के आखिरी के दिन बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे. भारत को हॉकी के खेल में शीर्ष स्थान में पहुंचाने वाले खिलाड़ी को देश भूल गया. उन्हें लीवर केंसर था. पैसे की कमी की वजह से उनका इलाज ठीक से नहीं हो पाया. दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में 3 दिसंबर 1979 को दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन मेजर ध्यानचंद को आज भी हॉकी प्रेमी भगवान की तरह पूजते हैं.

अन्य उपयोगी लेख: