नाम में क्या रखा है - hindi story

प्राचीन काल की बात है | तकशिला के महाविद्यालय में पापक नाम का एक विध्यार्थी पढ़ता था| उसके साथी जब उसे पापक कहकर पुकारते. तो वह अपने अशुभ नाम पर बहुत लज्जित होता था|

एक दिन उसने सोचा की उस बुरे नाम के जगह पर अपना कोई अच्छा नाम रख लेने में मेरा गौरव बढ़ जाएगा ! वह अपने आचार्य से बोला-“गुरुदेव! मुझे अपने कुनाम के कारण दुसरो के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है, इसलिए कृपा करके मेरा दूसरा कोई सुन्दर -सा नाम रख दें |”

आचार्य ने कहा- “वत्स, मैं पापक के स्थान पर तेरा दूसरा कोई नाम रख दूंगा , परन्तु पहले तू आसपास के गांवो में जाकर अपने लिए कोई शुभ नाम ढूंढ ला| ”

पापक घूमते-घूमते एक गांव में पहुंचा| वहाँ कुछ लोग एक शव को शमशान में फुंकने ले जा रहे थे | पापक ने एक से पूंछा-“क्यों भाई कौन मरा है ?”

किसी ने कहा-“इसी गांव का रहने वाला अमरपाल है |”

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पापक चकित होकर पूछा -“क्या अमरपाल हो कर भी यह मर गया ? यह कैसे हो सकता है ?”

उस आदमी ने कहा -“तुम कैसे मुर्ख हो ! भला अमरपाल नाम होने से ही कोई संसार में अमर हो सकता है|”

पापक ने सोचा -‘ऐसा नाम से क्या लाभ ! मुझे कोई सार्थक नाम ढूंढ़ना चाहिए |’

वह आगे बड़ा | कुछ दूर जाने में एक स्त्री सिर पर गठर ढोती हुई मिली| उसने उसका नाम पूछा|

स्त्री ने अपना नाम धनपाली बताया | इसके बाद पापक ने पूछा क्या काम करती हो | स्त्री ने कहा -“मैं एक दरिद्र स्त्री हूँ, मेहनत -मजदूरी करके पेट पालती हूँ ”

पापक ने सोचा-“नाम तो धनपाली और काम कंगाली का ! कैसी उल्टी बात थी ” उसने स्त्री से पूछा – “माताजी आप धनपाली होकर भी निर्धन क्यों है?”

स्त्री बोली -“बेटा,नाम से क्या होता है , तुम उसके धोखे में क्यों पड़ते हो ? संसार में कर्म प्रधान है ”

पापक निराश होकर दूसरे गांव में पहुंचा | वहाँ भांति-भांति के लोग मिले | एक चोर को राजा के सिफाही पकड़कर ले जा रहे थे | पूछने पर उन्होंने उसका नाम धर्मपाल बताया |

‘वाह!’ नाम धर्मपाल और काम चोरी | पापक ने मन ही मन सोचा |

एक कंजूस को लोग धिक्कार रहे थे| पापक ने पूछने पर उन्होंने उसका मन धर्मदास बताया |

पापक ने मन ही मन कहा-‘कैसी विचित्र बात है -देने में कंजूस है ,नाम धर्मदास है|’

एक भिखारी भीख मांग रहा था | पूछने पर उसने अपना नाम लखपतिराय बताया|

पापक ने सोचा -‘घर घर मांगता भीख है और नाम है लखपतिराय’|

ऐसे ही विद्याधर नाम का एक अशिक्षित आदमी मिला |

उसे देखकर पापक ने अपने आप से कहा -“क्या अदभुद लीला है!”

एक वैरागी मिला | उसका नाम पीताम्बर था | पापक ने कहा -“बांधे लंगोट फिरे, नाम पीताम्बर” इस नाम से क्या लाभ! और आगे जाने पर एक आदमी खाट पर देह खुजलाता दिखाई पड़ा | उसके शरीर पर दाद हो गई थी, उसने नाम निर्मलदास बताया |

इस प्रकार घूमते -घामते उसे अनुभव हो गया केवल नाम की महिमा नहीं सिद्ध होती |वह लौटकर आचार्य के पास पहुंचा |

आचार्य ने पूछा -“कहो पापक, अपने लिए तुम कोई अच्छा नाम चुन लाए!”

पापक ने कहा-“देव नाम तो बहुत मिले, परन्तु उनके कारण मैंने किसी का गौरव बढ़ता नहीं देखा |” सब लोग नाम से विपरीत थे| ऐसी दशा में मै तो यह सोचता हूँ की बड़े अच्छे नाम से ही किसी को बड्डपन नहीं मिलता |आदमी वास्तव में अपने गुणों और चरित्र के अनुसार मान – स्थान पाता है| मै अब नाम को महत्व नहीं देता|

आचार्य ने कहा- “वत्स, मैंने तुम्हे यही सिखने क लिए भेजा था | आदमी को नाम से नहीं, कर्म से सिद्धि प्राप्त होती है| संसार की दृष्टि मै जो सत्कर्मी है, उसी का नाम होता है और जो दुष्कर्मी और अकर्मण्य है, उसका भला नाम दुसरो को कष्ट देता है| तुम गुणी बनो , चरत्रवान बनो, तब भला पापक नाम के कारण कोई तुम्हे अधम कैसे मान लेगा| आदमी के कार्य उसे महान बनाते है न की नाम |”

उसके बाद पापक को कभी अपने नाम से शिकयत नहीं रही |