
यह एक ऐसे एक्टर के बारें में है जिसे किसी फिल्म में बड़ा रोल हासिल करने के लिए 12 साल लग गए लेकिन कुछ ही सालों में देश से लेकर विदेश तक अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया. हम बात कर रहे हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी की. उनका जन्म 1974 में उतरप्रदेस के मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे से गांव बुढ़ाना में हुआ था. 9 भाई बहनों के बीच नवाज सबसे बड़े हैं. उनके पिता एक किसान है और वे बताते हैं कि नवाज पूरे साल पैसे जुटाता था और ईद या दिवाली के समय शहर जाकर मूवी देखता था.
नवाजुद्दीन शुरू से ही अपने गांव से निकल जाना चाहते थे. वजह थी कि वहां का माहौल बिल्कुल भी अच्छा नहीं था. नवाज कहते हैं कि उनके गांव में बस लोग तीन ही चीज जानते हैं गेहूं, गन्ना और गन. माहौल अच्छा ना होने की वजह से वह हरिद्वार चले गए. जहां उन्होंने केमिस्ट्री में बीएससी की पढ़ाई की. इसके बाद वह बड़ोदरा गुजरात में एक कंपनी में बतौर केमिस्ट का काम करने लगे. इस काम में उनका मन नहीं लगता था लेकिन पैसे के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही था इसलिए वह किए जा रहे थे. एक दिन उनके एक दोस्त ने गुजराती नाटक दिखाया. वह नाटक देख कर उन्हें मजा आ गया और उनके अंदर से फीलिंग आई शायद यही वह काम है जिसे करने के लिए पैदा हुए हैं पर आज तक समझ नहीं पा रहे थे. वे इस फील्ड में अपना कैरियर बनाने दिल्ली आ गए. वहां पर उन्होंने कुछ प्ले देखें और फिर एक्टर बनने का दृढ़ निश्चय कर लिया. फिर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा चले गए. वहां से उन्होंने एक्टिंग सीखी. 4 साल तक वे दिल्ली में रहे और छोटे मोटे रोल भी प्ले किए लेकिन उनका खर्चा नहीं चल पा रहा था.
सन 2009 में मुंबई इस आशा के साथ आ गए कि जल्द ही उन्हें TV सीरियल में काम मिल जाएगा. जिससे उनका जीवन पटरी पर आ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्हें कोई काम नहीं मिला. नवाज ने एक इंटरव्यू में बताया हर जगह वह अपना फोटो देते रहे लेकिन कोई भी रोल देने के लिए तैयार नहीं था. वहां भिखारी के लिए भी उन्हे छह फिट का आदमी चाहिए होता था और मुझ जैसे छोटे सांवले आदमी को कोई लेना पसंद नहीं करता था. नवाज के पास अब बिलकुल भी पैसे नहीं बचे थे इसीलिए उन्होंने नेशनल ड्रामा के एक सीनियर से पनाह मांगी और उसने एक शर्त पर अपने वहां रखा कि घर का सारा काम तुम्हें ही करना पड़ेगा. थोड़े पैसे के लिए उन्होंने वॉचमैन की जॉब कर ली और सुबह से शाम तक जॉब करते और शाम के बाद थिएटर करते थे.
सीरियल में जॉब ना मिलने के बाद फिल्मों में छोटे-मोटे रोल खोजना शुरू किए. कैसे भी करके रोल मिला तो लेकिन वह भी बहुत छोटा सा. उनका अभिनय पॉकेटमार और धक्का मार तक ही सीमित रह जाता था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. आशा लगाकर बैठे रहे की कभी ना कभी तो कोई बड़ी भूमिका उन्हें जरूर मिलेगी. एक समय ऐसा भी था कि उनके पास खाना खाने के पैसे भी नहीं थे और उन्हें लगता था कि अपने गांव वापस चले जाना चाहिए लेकिन फिर वह सोचते आखिर क्या मुंह लेकर घर वापस जाएं.
एक बार डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने उनका एक हिंदी नाटक देखा और प्रभावित होकर उन्हें ब्लैक फ्राइडे में एक बड़ा रोल रोल दिया जिसे नवाज ने बखूबी निभाया. बस वही से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गई थी. कुछ अच्छे और बड़े रोल मिलने की वजह से उनकी पैसे की समस्या तो काफी हद तक कम हो गई लेकिन वे अब भी संतुष्ट नहीं थे. वे अपना बेस्ट दे रहे थे. नवाज की जुनूनीयत को देखते हुए अनुराग कश्यप ने उन्हें साइड स्टार से स्टार बनाने का सोच लिया और गेंस ऑफ वासेपुर में उन्हें लीड रोल दे दिया. बस वहीं से नवाज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और इसके बाद नवाज ने मांझी द माउंटेन मैन में अपने एक्टिंग का लोहा मनवाया. बजरंगी भाईजान में भी उनके सपोर्टिंग रोल को बहुत सराहा गया. उनकी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के कारण ना सिर्फ वह बड़े पर्दे पर छा गए बल्कि बहुत सारे अवार्ड भी अपने नाम कियें.
नवाज अपने आप को स्टार नहीं एक्टर मानते हैं. उनका कहना है कि वह Star नहीं बनना चाहते. वह एक एक्टर बन कर रहना चाहते हैं क्योंकि स्टार बनने के बाद आपकी पहचान बन जाती है और आप आसानी से घूम फिर भी नहीं सकते. दोस्तो नवाजुद्दीन में ऐसा कुछ भी नहीं था जो ट्रेडिशनल बॉलीवुड स्टार में होता है. फिर भी आज वह एक बड़े स्टार है. अगर आपको अपने सपने को पाना है कभी हार मत मानो है चाहे कितनी भी मुश्किलों का सामना क्यों ना करना पड़े. बस उनसे लड़ते हुए आगे बढ़ते रहो, ऊपरवाला आपकी मेहनत देखता है और उसका फल देर ही सही लेकिन देता जरूर है.