कहते है ना जिंदगी में कोशिश करने वाले कभी हार नहीं मानते जैसे कि कवि कालिदास ने भी नहीं मानी वे धित्कारना के बाद सच्चे मार्ग पर प्रशस्त हुए और साहित्य के महान कवि बन लोगों के लिए प्रेरणा बने।कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे, साथ ही वह संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे। अपने कल्याणकारी विचारों के कारण वह भारत के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की। उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप सम्मलित किया है। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं। उन्होनें श्रुंगार रस को अपनी कृतियों में इस तरह डाला है मानो कि पाठकों में भाव अपने आप जागृत हो जाएं। इसके साथ ही विलक्षण प्रतिभा से निखर महान कवि कालिदास जी के साहित्य की खास बात ये है कि उन्होनें साहित्यिक सौन्दर्य के साथ-साथ आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास की अभिज्ञानशाकुंतलम् सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्ण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है।

कालिदास का जन्म किस काल में हुआ और वह मूलतः किस स्थान के थे इसमें काफ़ी विवाद है।लेकिन कालिदास के जन्म को लेकर विद्धानों के अलग-अलग मत है। कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा और अग्निमित्र ने 170 ईसापू्र्व में शासन किया था, अतः कालिदास के समय की एक सीमा निर्धारित हो जाती है कि वह  इससे पहले नहीं हुए हो सकते। छठीं सदी ईसवी में बाणभट्ट ने अपनी रचना हर्षचरितम् में कालिदास का उल्लेख किया है तथा इसी काल के पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में कालिदास का जिक्र है अतः वे इनके बाद के नहीं हो सकते। इस प्रकार कालिदास के प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी के मध्य होना तय है। दुर्भाग्यवश इस समय सीमा के अन्दर वह कब हुए इस पर काफ़ी मतभेद हैं। कालिदास के जन्मस्थान के बारे में भी स्पष्ट नहीं है। मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं। कालिदास के जन्मस्थान के बारे में भी साहित्यकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ साहित्यकारों की माने तो कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था वहीं कविल्ठा गांव में भारत सरकार के द्धारा कालिदास की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है इसके साथ ही एक सभागार का निर्माण भी करवाया गया है। कालिदास जी के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे बचपन में अनपढ़ थे और मुर्ख। लेकिन बाद में वे साहित्य के विद्दान हो गए और उन्हें हिन्दी साहित्य के महान कवि का दर्जा मिला।

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कालिदास का विवाह :-

कवी कालिदास का विवाह विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ विवाह करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का निश्चय किया। विद्वानों को एक  वृक्ष दिखाई दिया जहां पर एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था। उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं। उन्होंने उसे राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर नीचे उतारा और कहा- “मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे बस वही करना”। विद्वानों ने कालिदास को विद्योत्तमा के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि हमारे गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है, परंतु अभी मौनव्रती हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे। इनके संकेतों को समझ कर हम वाणी में उसका उत्तर आपको देंगे। शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे। प्रथम प्रश्न विद्योत्तमा ने किया संकेत में एक उंगली दिखा कर कि ब्रह्म एक है। परन्तु कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। क्रोध में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत किया इस भाव से कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों फोड़ दूंगा। लेकिन कपटियों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाहते हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है।अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता। इससे प्रभावित होकर राजकुमारी विद्योत्मा ने कालिदास से शादी करने के लिए हामी भर दी और उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया।

विवाह के पश्चात, कालिदास अपनी कुटिया में आ जाते हैं और प्रथम रात्रि को ही जब दोनों एक साथ होते हैं उसी समय ऊंट की आवाज आती है तो संस्कृत में विद्योत्तमा में पूछती है “किमेतत्” परंतु कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया “ऊट्र” उस समय विद्योत्तमा को पता चला कि कालिदास अनपढ़ है। उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस नहीं आना। कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की आराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खड़का कर कहा – कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि! (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा — अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)। इस तरह उन्हें अपनी पत्नी के धित्कारने के बाद परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे महान कवि बन गए। आज उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी यही नहीं संस्कृति साहित्य में अभी तक कालिदास जैसा कोई दूसरा कवि पैदा ही नहीं हुआ।

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कालिदास की रचनाये:-

कालिदास की लगभग चालीस रचनाएँ हैं. इनमें से मात्र सात ही ऐसी हैं जो निर्विवाद रूप से कालिदासकृत मानि जाती हैं.

खंडकाव्य- मेघदूत, ऋतुसंहार।

महाकाव्य – रघुवंश, कुमारसंभव।

तीन नाटक- अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय।

इनके अलावा कई छिटपुट रचनाओं का श्रेय कालिदास को दिया जाता है, लेकिन विद्वानों का मत है कि ये रचनाएं अन्य कवियों ने कालिदास के नाम से की। नाटककार और कवि के अलावा कालिदास ज्योतिष के भी विशेषज्ञ माने जाते हैं। उत्तर कालामृतम् नामक ज्योतिष पुस्तिका की रचना का श्रेय कालिदास को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि काली देवी की पूजा से उन्हें ज्योतिष का ज्ञान मिला। इस पुस्तिका में की गई भविष्यवाणी सत्य साबित हुईं।

कालिदास जी ने इस तरह अपनी विलक्षण प्रतिभा से न सिर्फ साहित्य की दुनिया में अपना नाम किया बल्कि उन्होनें कवि के रूप में भारत में अपनी अलग पहचान बनाई। महाकवि कालिदास जी का जीवन वाकई प्रेरणादायक है जो भी कालिदास जी की रचनाओं का अध्ययन करता है वे सभी उनकी रचनाओं में डूब जाता है और उनकी प्रशंसा करने से खुद को नहीं रोक पाता। इस तरह कालिदास जी ने विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वहीं कालिदास जी की रचनाओं की कुछ खास बातें जिसकी वजह से उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान मिला औऱ वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में शामिल हो गए.

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