दोस्तों आज मैं बात करने जा रहा हूं भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के बारे में जिन्होंने अपनी रिसर्च से पूरी दुनिया को बताया कि पेड़ पौधों में भी हमारी आपकी तरह जीवन होता है। वह भी हमारी तरह सर्दी और गर्मी को महसूस करते हैं। उन्हें भी दर्द होता है सुख दुख का एहसास होता है। इसके अलावा उन्होंने ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिससे बिना तारों के संदेशों को भेजा जा सकता था। जिसे हम आज के समय में वायरलेस टेक्नोलॉजी के रूप में जानते हैं। उनके इसी रिसर्च के आधार पर आजकल रेडियो TV और इंटरनेट काम करते हैं।
दोस्तों उनके आविष्कार के बारे में हम आगे डिटेल में बातें करेंगे लेकिन पहले शुरू से हम जगदीशचंद के बारे में जानते हैं। जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को मेमन सिंह नाम के गांव में हुआ था जो पहले भारत में था लेकिन अब यह बांग्लादेश का हिस्सा है। उनके पिता का नाम भगवान चंद्र बोस था जो उस समय डिप्टी कलेक्टर थे। उस समय बच्चों को इंग्लिश स्कूल भेजना पैसे वाले लोगों के लिए एक सम्मान माना चाहता था लेकिन भगवान चंद्र अपने बेटे को एक सच्चा देशभक्त बनाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने जगदीश चंद्र का एडमिशन गांव की एक बांग्ला स्कूल में करवा दिया क्योंकि उनका मानना था कि इंग्लिश सीखने से पहले उन्हें अपनी मातृभाषा, अपनी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए। जगदीश चंद्र ने एक बार अपने बचपन को याद करते हुए इंटरव्यू में बताया कि मैं जिस बांग्ला विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा गया वहां पर मेरी दाई तरफ मेरे पिता के ड्राइवर का बेटा बैठा करता था और मेरी बाए तरफ एक मछुआरे का बेटा और इन्हीं के साथ मैं खेलता भी था। उनकी पेड़-पौधों पंछी की कहानियां बहुत ध्यान से सुनता था और शायद उनकी कहानियों से मुझे चीजों के बारे में जानने का इंटरेस्ट बढ़ा और गांव में स्कूल की पढ़ाई के बाद वह कोलकाता आ गए और वहां के एक बहुत ही प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर स्कूल में एडमिशन लिया जहां से उन्होंने फिजिक्स की पढ़ाई की। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह कैंब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज चले गए और वहां उन्होंने नेचुरल साइंस की डिग्री ली।
1885 में वह अपने देश भारत वापस आ गए और कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में फिजिक्स के टीचर बन गए। जिस कॉलेज में वह टीचर बने उस समय वहां ज्यादातर टीचर्स अंग्रेज थे। साथ ही साथ वहां का प्रिंसिपल भी एक अंग्रेज ही था। उस समय भारतीय टीचर को अंग्रेजों के मुकाबले बहुत कम सैलरी दी जाती थी और भारतीयों के साथ भेदभाव रखा जाता था। लेकिन जगदीशचंद्र ने बचपन से ही अपने देश और जाति के स्वाभिमान को समझा था इसीलिए उन्होंने इसका विरोध किया और अंग्रेज टीचर से कम सैलरी लेने से मना कर दिया। उन्होंने ठान लिया कि अगर वह अंग्रेज टीचर्स के बराबर मेहनत करते हैं तो उन्हें एक बराबर पैसे और इज्जत भी मिलनी चाहिए। उन्होंने इसी जिद्द को पकड़े हुए 3 साल तक सैलरी नहीं ली जिससे आगे चल कर उनके पास पैसों की बहुत कमी हो गई और कोलकाता सिटी से अपने घर को बेचकर सिटी से दूर एक सस्ता मकान लेना पड़ा। कलकत्ता काम पर आने के लिए वह अपनी वाइफ के साथ हुगली नदी को पार करके आते थे। उनकी वाइफ उनको छोड़कर नाव लेकर अकेले लौट जाती थी और शाम को वापस नाव लेकर उन्हें लेने आती थी। बहुत सारी परेशानियों का सामना करने के बावजूद वह धैर्य के साथ अपनी बात पर अड़े रहे और आखिरकार अंग्रेजों को उनके सामने झुकना ही पड़ा और उनके साथ साथ और भी सभी भारतीय टीचर्स को अंग्रेज टीचर्स के बराबर सैलरी देने का नियम बनाना पड़ा।
उस कॉलेज में पढ़ाने के बाद अपना बचा हुआ टाइम रिसर्च में लगाते थे। रिसर्च करते हुए उन्होंने ऑडियो और ऑप्टिक की खोज में बहुत इंपॉर्टेंट रोल निभाया और ऐसे मशीनें बनाई जिससे बिना तार के संदेशों को भेजा जा सकता था और इसे प्राप्त भी किया जा सकता है। उनके इसी प्रयोग के आधार पर आज भी वायरलेस टेक्नोलॉजी काम करती हैं लेकिन इस खोज का पूरा क्रेडिट एक दूसरे वैज्ञानिक मारकोनी को चला गया क्योंकि जगदीश चंद्र बोस किसी भी खोज के पेटेंट के खिलाफ थे। उन्होंने अपने खोजों से व्यवसायिक लाभ उठाने की जगह इन्हें सभी को बता दिया ताकि और भी लोग इस पर आगे काम करते रहें और इसकी एडवांस ख़ोज हो सके। इस तरह उन्हीं की खोज पर आगे काम करते हुए मारकोनी ने इसे अपने नाम से रजिस्टर करवाया था। उन्होंने बायो फिजिक्स के फील्ड में भी बहुत ही आश्चर्यजनक प्रोजेक्ट है। उन्होंने अपनी खोज में दिखाया कि पौधों में उत्तेजना का संचार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से होता है ना कि केमिकल माध्यम से। उनका मानना था कि पेड़ पौधों में भी हमारी तरह जीवन है। उन्हें भी हमारी तरह दर्द होता है। हमारी तरह सुख दुख का एहसास होता है। इसी खोज को साबित करने के लिए लिए जगदीश चंद्र ने ऐसे मशीन का आविष्कार किया जिससे पौधों की नब्ज को नापा जा सकता था। इस मशीन को बाद में क्रेस्कोग्राफ़ नाम से जाना गया। इसके रिसर्च के लिए उन्होंने एक पौधे को जड़ के साथ ऐसे बर्तन में डाल दिया जिसमें ब्रोमाइड जहर खुला हुआ था और फिर उन्होंने देखा कि पौधों की पल्स एक सामान्य जीव जंतु की तरह अस्थिर हो रही है। अचानक से कभी तेज हो जाती थी तो कभी धीमी और धीरे-धीरे करके वह मुरझा सी गई। मतलब एक इंसान की तरह उसकी भी पल्स काम करती हैं और उस पौधे की मृत्यु हो गई।
इसी बात को वह दूसरों को समझाने के लिए बहुत सारे महान वैज्ञानिकों को एक जगह बुलाया और अपने रिसर्च को दिखाने के लिए जहरीला इंजेक्शन एक पौधे को लगाया और कहा कि इसके पल्स अब धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे और यह पूरी तरह मुरझा जाएगा लेकिन कुछ घंटो तक ऐसा नहीं हुआ और वह पौधा वैसे का वैसा हरा-भरा रहा ऐसा देखकर वहां बैठे सभी लोग हंसने लगे लेकिन सुभाष चंद्र को अपनी रिसर्च पर पूरा भरोसा था। उन्होंने कहा कि मेरा रिसर्च गलत नहीं हो सकता। मैं इस इंजेक्शन को अपने पर ट्राई करता हूं और जैसे ही वह अपने आप को इंजेक्शन लगाने जा रहे थे तभी भीड़ से एक आदमी खड़ा हुआ और उसने यह स्वीकार किया कि उसने उस जहर वाले इंजेक्शन की जगह पानी से भरा इंजेक्शन रख दिया था। उसके बाद उन्होंने इंजेक्शन को बदलकर सक्सेसफुली अपने खोज को लोगों के सामने लाया और बहुत सारे फ्रेंड्स के कहने पर उन्होंने क्रेस्कोग्राफ़ पेटेंट लिया। यह अमेरिका में लिया गया किसी भारतीय का सबसे पहला पेटेंट था। इसके अलावा भी जगदीशचंद्र ने बहुत सारी छोटी-छोटी खोजें की है। भारत देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है। इंस्टिट्यूट ऑफ़ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग ने जगदीश चंद्र बोस को अपने वायरलेस हॉल ऑफ फेम में सम्मिलित किया और वह सन 1920 में रॉयल सोसायटी के फेलौ चुने गए और आखिर में विज्ञान के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने के बाद भारत के वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस ने 23 नवंबर 1937 को इस जहां को अलविदा कहा।
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