अंग्रेजी में एक कहावत है success is the best revenge मतलब सफलता सबसे अच्छा बदला है। आज हम टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा के जीवन के एक ऐसे पड़ाव के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसमें उन्होंने अपनी सफलता से अपने अपमान का बदला लिया। इस कहानी को शुरू करने से पहले रतन टाटा के जीवन के बारे में कुछ जान लेते हैं। रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था। यह टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी Tata के पोते हैं। 1991 में उन्हें टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया गया। उसके बाद रतन टाटा की देखरेख में ही टाटा कंसल्टेंसी सर्विस शुरुआत हुई। उसके बाद उन्होंने टाटा चाय, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील जैसी कंपनियों को शिखर पर पहुंचाया।
भारत सरकार ने रतन टाटा को दो बार पदमविभूषण द्वारा सम्मानित किया। यह सम्मान देश के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक का सम्मान है। टाटा का बिजनेस सो देशों में फैला हुआ है और उनकी कंपनी में करीब 650000 लोग काम करते हैं। सबसे बड़ी बात टाटा ग्रुप की यह है कि वह अपने फायदे का 66 परसेंट चैरिटी में दान करते हैं। हमें उम्मीद है कि आप रतन टाटा के बारे में थोड़ा सा जान गए होंगे तो चलिए अब बात करते हैं उस घटना के बारे में जिसमें रतन टाटा ने अपने अपमान का करारा जवाब अपनी सफलता से दिया।
बात उस समय की है जब टाटा ग्रुप ने 1991 में टाटा इंडिका कार बाजार में launch की। रतन टाटा का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था। इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी लेकिन इंडिका कार को मार्केट में अच्छा रिस्पांस नहीं मिला था। जिसके कारण कुछ सालों बाद टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी थी। टाटा मोटर्स के साझेदारों ने रतन टाटा को कार व्यापार में हुए नुकसान की पूर्ति के लिए कंपनी को बेचने का सुझाव दिया और ना चाहते हुए भी रतन टाटा को अपने दिल पर पत्थर रखकर यह काम करना पड़ रहा था। वह Tata Motors के साझेदारों के साथ अपनी कंपनी बेचने का प्रस्ताव फोर्ड कंपनी के पास ले गए। इसका हेड क्वार्टर अमेरिका में है। फोर्ड कंपनी के साथ रतन टाटा और उनके पार्टनर की मीटिंग करीब 3 घंटे तक चली। फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ बहुत बदसलूकी के साथ व्यवहार किया और बातों ही बातों में यह कह दिया जब तुम्हें इस बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो कार को launch करने में इतना पैसा क्यों लगाया। हम तुम्हारी कंपनी खरीद कर हम तुम पर एहसान कर रहे हैं। यह बात रतन टाटा को दिल पर लग गई। वह रातोंरात अपने पार्टनर के साथ उस deal को छोड़ कर वापस चले आए। बिलफोर्ड की उन बातों को रतन टाटा भुला नहीं पा रहे थे। वह उनके दिमाग में बार बार आ जा रही थी।
उसके बाद रतन टाटा ने अपनी कंपनी को किसी को नहीं बेचने का निर्णय किया। उन्होंने अपनी पूरी जी जान लगा दी और देखते ही देखते Tata के कार के बिजनेस एक अच्छी खासी फ्लो में आने लगा। जिससे उन्हें बहुत फायदा हुआ। वहीं दूसरी तरफ फोर्ड कंपनी लोस में जा रही थी और सन 2008 के अंत तक दिवालिया होने की कगार पर थी। उस समय रतन टाटा ने फोर्ड कंपनी के सामने उनकी लग्जरी कार रेंज रोवर और जगुआर को खरीदने का प्रस्ताव रखा और बदले में फोर्ड को अच्छा खासा दाम देने को कहा क्योंकि बिलफोर्ड पहले से ही जैगुआर और रेंज रोवर की वजह से घाटा झेल रहे थे उन्होंने यह प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। बिलफोर्ड उसी तरह अपने साझेदारों के साथ टाटा के मुख्यालय में पहुंचे थे जैसे कभी रतन टाटा और उनके साथी बिलफोर्ड से मिलने के लिए उनके मुख्यालय पहुंचे थे। मीटिंग में यह तय हुआ कि जैगुआर और रेंज रोवर ब्रांड 9300 करोड़ रुपए में Tata समूह के अधीन होगा। इस बार भी बिलफोर्ड ने वही बात दोहराई जो उन्होंने मीटिंग में रतन टाटा से कही थी बस इस बार बात थोड़ी पॉजिटिव थी।
बिलफोर्ड ने कहा आप हमारी यह कंपनी खरीद कर हमारे ऊपर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। आज जैगुआर और रेंज रोवर टाटा समूह का हिस्सा है और बाजार में अच्छे मुनाफे के साथ आगे बढ़ रही है। रतन टाटा अगर चाहते तो बिलफोर्ड को उस मीटिंग में करारा जवाब दे सकते थे लेकिन रतन टाटा अपने सफलता के नशे में चूर नहीं थे। यही वह गुण है जो एक सफल और एक महान इंसान के बीच का अंतर बताता है। जब व्यक्ति अपमानित होता है तो उसका परिणाम क्रोध होता है लेकिन महान लोग अपने क्रोध का उपयोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं।
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