हठीला ब्राह्मण- Stubborn Monk | Hindi Story

हठीला ब्राह्मण a hindi storyएक समय की बात है. महागंगा नदी के किनारे एक नगर बसा हुआ था. नगर बड़ा ही सुंदर था. नगर में एक ब्राह्मण रहता था ब्राह्मण का नाम भागमल था. वह वेदों का ज्ञाता था. यज्ञ भी किया करता था. पंडित तो था ही, पर धनी होने पर भी भिक्षा जीवी था

उसकी पत्नी का नाम शांति था. उसका नाम तो शांति था किंतु स्वभाव बड़ा विचित्र था. अपने स्वभाव के कारण वह अशांति फैलाती रहती थी क्योंकि उसे दूसरों के दोष को इधर-उधर प्रचारित करने में बड़ा सुख मिलता था.

भागमल के कोई संतान नहीं थी. वह संतान के लिए दिन रात तड़पता रहता था. उसे अपना धन और अपना पांडित्य यह सब व्यर्थ लगता. उसने संतान की प्राप्ति के लिए कई बार यज्ञानुष्ठान किए. फिर भी उसे संतान की प्राप्ति नहीं हुई. अंत में भागमल निराश हो गया. इसी चिंता में घुलते घुलते वह बेहद कमजोर हो गया. जब संतान प्राप्ति की आशा बिल्कुल समाप्त हो गई तो भागमल को दुनिया जहान से विरक्ति हो गई और उसने घर बार छोड़कर वन में जाने का विचार कर लिया.

एक दिन सुबह सुबह वह बन के लिए चल पड़ा. उसके मुंह पर उदासी छाई हुई थी. उसका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था. वह जब नगर से दूर चला गया तो रास्ते में उसकी भेट एक प्रसिद्ध सिद्ध महात्मा से हुए. महात्मा ने उसके उदास चेहरे को देखकर उससे पूछा – ब्राह्मण देवता, आप बहुत दुखी दिखाई पड़ रहे हो. कारण क्या है?

सिद्ध महात्मा की सहानुभूति भरी वाणी सुनकर भागमल और अधिक दुखी हो उठा. उसकी आंखों में आंसू आ गए. फिर दुखी स्वर में वह बोला महात्मन मेरे पास विद्या हैं, धन भी हैं पर संतान नहीं है. संतान की प्राप्ति के लिए मैंने यज्ञ अनुष्ठान किये पर फिर भी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई. संतान ना होने से मुझे सारा संसार अंधकार में दिखाई पड़ता है.

भगमल की बात सुनकर महात्मा के मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो उठी. महात्मा विचारों में डूब गए और मन ही मन सोचने लगे. माधवबाग बड़े योगी थे. उन्होंने अपने योग की शक्ति से सब कुछ जान लिया. उन्हें इस बात का पता चल गया कि ब्राह्मण के कोई संतान क्यों नहीं है.

महात्मा ने सोचते हुए उत्तर दिया – ब्राह्मण देवता चिंता और प्रयत्न करना व्यर्थ है. विधाता ने आपके भाग्य में संतान लिखी ही नहीं. फिर आपको संतान की प्राप्ति कैसे हो सकती है???

सिद्ध महात्मा के कथन का प्रभाव भागमल के हृदय पर रंचमात्र भी नहीं पड़ा. उसने बड़ी दीनता और नम्रता दिखाते हुए फिर कहां – महात्मा कोई ऐसा उपाय कीजिए कि मुझे एक पुत्र की प्राप्ति तो हो ही जाए. पुत्र ना होने से मुझे अपना जीवन व्यर्थ लगता है.

महात्मा ने सोचते हुए कहा – ब्राहमण देवता. आप वेदों के ज्ञाता है, यज्ञ भी करते हैं. आपको इस तरह मोह में नहीं फंसना चाहिए. जीवन में सुख और शांति संतान से नहीं मिलती, भगवान की भक्ति से मिलती है. संतान के मोह की चिंता छोड़कर भगवान की भक्ति में मन लगाइए कल्याण होगा, सुख मिलेगा.

किंतु महात्मा की बात भागमल के गले नहीं उतरी. संतान के मोह ने उसके मन और प्राण को जैसे जकड़ लिया था. उसने महात्मा की ओर देखते हुए फिर कहा – महात्मन यदि आप अपने योग की शक्ति से मुझे एक पुत्री अथवा पुत्र नहीं देंगे तो मैं तत्काल आपके सामने प्राण का परित्याग कर दूंगा.

महात्मा ने भागमल से कहा – हट मत करो. हट करके जो वस्तु प्राप्त की जाती है उससे दुख के सिवा कुछ नहीं मिलता. आज तक जितने भी हट किया है उसे दुख की आग में जलना ही पड़ा है.

किंतु भागमल को यह उपदेश संतुष्ट ना कर सका. वह संतान की प्राप्ति के लिए अनुनय-विनय करता रहा, न मिलने पर आत्म घात करने करने की बात भी करता रहा

आखिरकार महात्मा ने अपने योग के द्वारा उसे एक पुत्र प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया. पर्याप्त समय गुजर जाने के बाद महात्मा की दया से उनके घर एक पुत्र पैदा हुआ. उसका वह पुत्र इतना दुखदायी सिद्ध हुआ की ब्राह्मण का हृदय कांप उठा. सच यह है कि, किसी वस्तु के लिए हट नहीं करना चाहिए. क्यूंकि जो वास्तु हट से प्राप्त की जाती है उससे दुख के सिवाय और कुछ नहीं मिलता.

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