Blind CEO Shrikant Bola Success Story | Biography

Blind CEO Shrikant Bola Success Story
Blind CEO Shrikant Bola Success Story

कौन कहता है कि आसमान में सुराग नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

दोस्तों आज मैं बात करने जा रहा हूं एक ऐसे शख्स की जो पूरी दुनिया के लिए हौसले और जज्बे की एक मिसाल है। जिन्होंने अपने कर्मों से पूरी दुनिया को बता दिया कि अभी भी इंसानियत नाम की चीज़ इस दुनिया में बची हुई है। दूसरों की मदद करने वाले और उनका दर्द समझने वाले लोग अभी भी जिंदा है। मैं बात कर रहा हूं श्रीकांत बोला कि जो अपने जन्म से ही नेत्रहीन है और उन्हें इन सारी कमियों की वजह से शुरु से ही उन्हें सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा लेकिन इन सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी जीत से उन्होंने समाज के लोगों को आइना दिखाया और सिर्फ 23 साल की उम्र में 50 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी और इतना ही नहीं उन्होंने अपने जैसे हजारों दिव्यांगों को नौकरी दी और उन्हें सम्मान से अपने बलबूते पर जीना सिखाया।

श्रीकांत बोला के प्रेरणादायक जीवन के बारे में शुरू से जानते हैं।

श्रीकांत का जन्म 1922 में आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव सीतारामपुरा में हुआ था लेकिन जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके घर में खुशियां नहीं थी बल्कि गम का माहौल था क्योंकि वह नेत्रहीन पैदा हुए थे। नेत्रहीन पैदा होने की वजह से गांव वालों ने उनके माता-पिता से तो यह तक कह दिया बच्चा किसी काम का नहीं है इसे तो मार देना चाहिए नहीं तो बाद में चलकर आपका सहारा बनने की जगह यह आप पर बोझ बन जाएगा लेकिन मां-बाप कैसे भी क्यों न हो किसी भी हालत में क्यों ना हो। मां बाप अपने बच्चे के लिए ऐसी बात तो कभी सोच ही नहीं सकते।

श्रीकांत का पूरा परिवार खेती पर निर्भर था और उनके घर की आर्थिक स्थिति भी बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। इसके बावजूद उनके माता-पिता ने एक आम बच्चे की तरह उन्हें भी पढ़ाई के लिए पास के एक सरकारी स्कूल में भेजा लेकिन वहां पर श्रीकांत ने अंधे होने के कारण आम बच्चों के साथ पढ़ाई नहीं कर पाते थे। उन्हें हमेशा क्लास की अंतिम बेंच पर बिठाया जाता था और वह स्कूल की किसी भी एक्टिविटी में पार्टिसिपेट नहीं कर सकते थे। लोग हमेशा उन्हें हीन भावना से देखते थे। श्रीकांत के बचपन के दिन कुछ इस तरीके से बीते। फिर उनके पिता उन्हें अपने साथ खेत में ले जाने लगे थे ताकि वह हाथ बटा सके। वहां पर भी उनकी कोई मदद नहीं कर पाते थे लेकिन श्रीकांत के पिता को पता था उन्हें पढ़ाई का बहुत शौक है इसलिए उन्होंने श्रीकांत को शहर भेजकर कर उनका एडमिशन नेत्रहीन बच्चों के एक विशेष स्कूल में एडमिशन करवा दिया जहां पर श्रीकांत कुछ ही महीनों के अंदर पढ़ाई में अच्छा परफॉर्मेंस देने लगे और इतना ही नहीं वह जल्दी अपने लगन और मेहनत से क्लास के टॉपर भी बन गए।

पढ़ाई के साथ-साथ वह वहां खेलों में भी पार्टिसिपेट करने लगे और खेल की बात करें तो श्रीकांत को चेस खेलना बहुत पसंद था। कुछ सालों की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश के स्टेट बोर्ड से हाईस्कूल के एग्जाम दिए और लगभग 90% नंबरों के साथ पास आउट हुए। इससे उनके घर में खुशियों की लहर दौड़ गई और फिर आगे की पढ़ाई के लिए ग्यारहवीं में उन्होंने साइंस सब्जेक्ट लेने का मन किया लेकिन आंध्र प्रदेश स्टेट बोर्ड ने यह कहकर उनका फॉर्म रिजेक्ट कर दिया की ग्यारहवीं में नेत्रहीन बच्चे साइंस सब्जेक्ट नहीं ले सकते। इस बात से श्रीकांत को बहुत निराशा हुई लेकिन उन्होंने निराश होने होकर बैठने की बजाय अपने टीचर की सहायता से नियम के खिलाफ आवाज उठाई और फिर 6 महीने तक लडने के बाद बोर्ड को भी उनकी बात माननी पड़ी और बोर्ड ने उनका एडमिशन एक्सेप्ट कर लिया। फिर क्या था श्रीकांत में दिन रात एक कर अपने कठिन परिश्रम के बल पर 12वीं की परीक्षा में 98% नंबर ला कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। 12वीं के बाद भी वह शांत नहीं बैठे IIT की एंट्रेंस एग्जाम के लिए अप्लाई किया लेकिन वहां भी उनके जज्बे और नंबर स्कोर देखने की जगह दृष्टिहीनता की वजह से उन्हें एंट्रेंस एग्जाम में नहीं बैठने दिया गया और भारत के सभी कॉलेजों में उनके लिए अपना दरवाजा बंद कर दिया। हालांकि श्रीकांत ने अभी भी हार नहीं मानी और इंटरनेट के जरिए पता लगाते हुए उन्होंने अमेरिका के कुछ कॉलेज में अप्लाई किया जहां पर 4 कॉलेजों ने उनका एप्लीकेशन एक्सेप्ट कर लिया और फिर श्रीकांत ने एमआईटी को सेलेक्ट कर अमेरिका से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और इसके साथ वह वहां के पहले नेत्रहीन छात्र बने।

पढ़ाई के बाद श्रीकांत को अमेरिका में लाखों का जॉब ऑफर हुआ लेकिन श्रीकांत भारत वापस आ गए और अपने जैसे बहुत सारे दिव्यांगों की मदद करने लग गए। उन्होंने शारीरिक रूप से कमजोर लोगों प्रोत्साहित करने का काम स्टार्ट किया।  जिससे उनको समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाया जा सके और फिर उनके आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए Bollant Industries नाम की एक कंपनी चालू की जहां उन्होंने दिव्यांगों को नौकरी दी और अपने बलबूते पर जीना सिखाया।

जिस लड़के के लिए लोगों ने कहा था की यह आगे चलकर अपने मां-बाप का बोझ बन बनेगा। इसे मार ही देना अच्छा होगा लेकिन आज वही नेत्रहीन लड़का जिसे सब बेकार समझते थे ना सिर्फ खुद काम कर रहा है बल्कि अपने जैसे सैकड़ों लोगों को भी काम दे रहा है। श्रीकांत जैसे ही लोग ही हमेशा दुनिया में साबित करके दिखाते हैं अगर आपके अंदर कुछ कर जाने का जुनून है तो इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है।

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