रानी लछमीबाई झांसी की रानी थी। झांसी भारत के उत्तरी भाग में स्थित है। 1857 में शुरू हुई आज़ादी की लड़ाई में वो सबसे मुख्य थी। वो साहस और बहादुरी की एक मूरत थी।

प्रारंभिक जीवन –
लक्ष्मीबाई का जन्म 1828 में एक मराठी परिवार में काशी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था। उनके परिवार के लोग उन्हें प्यार से मनु बुलाते थे। 4 साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी माता को खो दिया था। जिससे उनके पालन – पोषण की सारी जिम्मेदारी उनके पिता पर आ गयी थी। अपनी पढाई करने के साथ ही उन्होंने सैनिक विधा भी सिख ली थी। सैनिक विधा में घुड़सवारी, निशानेबाज़ी और बाढ़ लगाना सिख लिया था।
1842 में उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव निवालकर से हो गया था। शादी के बाद उनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कर दिया गया। उनकी शादी की सारी रस्मे एक गणेश मंदिर में हुई थी जो की झांसी में ही स्थित था। 1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वो 4 महीने से ज्यादा न जी सका।
1853 में गंगाधर राव बहुत बीमार हो गए और बीमारी की वजह से बहुत कमजोर हो गए। तभी उन दोनों ने एक बच्चे को गोद लेने का निर्णय किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके दत्तक पुत्र पर किसी ब्रिटिश को कोई आपत्ति ना हो इसलिए उन्होंने एक ब्रिटिश प्रतिनिधि के सामने यह सारी प्रक्रिया की। 21 नवंबर, 1853 को गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी।
आक्रमण –
मृत्यु के समय , लार्ड डलहौज़ी भारत के गवर्नर जनरल थे। लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा था। अतः हिन्दू धर्म के अनुसार वही उनका असली वारिस था। फिर भी ब्रिटिश राज ने उसे उनके राज्य का वारिस मानने से मना कर दिया। इसलिए कोई शाशक न होने के कारण लार्ड डलहौज़ी ने झांसी को अपने कब्जे में ले किया। लक्ष्मीबाई ने इसके विरुद्ध एक याचिका लन्दन में पेश की, लेकिन उस याचिका को निरस्त कर दिया गया। ब्रिटिश अफसरों ने राज्य के गहनों को जब्त कर लिया। ब्रिटिश अफसरों ने रानी लक्ष्मीबाई को राजमहल छोड़कर रानी महल में जाने का आदेश दिया। लेकिन लक्ष्मीबाई डटी रही और अपने राज्य की रक्षा करती रही।
लक्ष्मीबाई ने कुछ ही समय में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया। अपने लोगो की मदद से उनसे स्वयंसेवको की एक सेना बनाई। इस सेना में न केवल आदमी थे बल्कि महिलाये भी बड़ी संख्या में थी। महिलाओ को भी लड़ाई लड़ने का सैनिक प्रशिक्षण दिया गया। युद्ध में लक्ष्मीबाई अपने सेनाध्यक्षो के साथ थी।
1857 में अपने राज्य पर हुए कई आक्रमणों में रानी ने अपने शत्रुओ को परास्त किया। जनवरी 1858 में ब्रिटिश सरकार ने अपनी सेना झांसी की तरफ कर ली थी। कई सप्ताह के संघर्ष के बाद, ब्रटिश सेना राज को अधिग्रहित करने में सफल हो गयी। रानी लक्ष्मीबाई आदमी के भेष में वहां से निकलने में सफल हो गयी।
उन्होंने तब कल्पी में शरण ली, और वहाँ पर तात्या टोपे से मिली। उनकी मृत्यु 17 जून , को ग्वालियर की लड़ाई के दौरान हुई। ऐसा कहा जाता है की रानी युद्ध में घायल हो गयी थी तो एक ब्राह्मण उन्हें अपने आश्रम में ले गए जहाँ उनकी मृत्यु हुई। अपने इसी सहस के कारण उन्हें भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन का जनक माना जाता है। उनकी इन सब लड़ाइयों उद्देश्य अपने बेटे दामोदर की और अपने राज्य की रक्षा करना ही था। उनकी कहानी आने वाले स्वतंत्रता सेनानियो के लिए प्रेरणा बनी।
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