Shivaji Maharaj History In Hindi शिवाजी महाराज की जीवनी और इतिहास

Shivaji Maharaj History In Hindi
Shivaji Maharaj History In Hindi

शिवाजी को छत्रपति शिवाजी महाराज और शिवाजी राजे भोसले के नाम से भी जाना जाता हैं। शिवाजी मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे ।

शिवाजी महाराज का जन्म 1627 ईस्वी (या 1630 ईस्वी) शिवनेरी में, जो की Puna के पास एक पहाड़ी किला हैं, में हुआ। शिवाजी के पिता शाहजी राजे भोसले बीजापुर के सुल्तान की सेना में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। शिवाजी की परवरिश उनकी मां जीजाबाई और Kondadev की द्वारा की गयी थी।

शिवाजी की मां जीजाबाई और उनके गुरु रामदास ने उन्हें महान और देशभक्ति के विचारों से प्रेरित किया। उन्हें सभी धर्मो और मातृभूमि से प्यार करना सिखाया।

1640 में, उन्होंने Saibai से शादी की।

शिवाजी ने अपने विजय अभियान शुरुवात 19 साल की उम्र में Torna किला, जो की पुणे से 20 किलोमीटर दूर था को जीत कर की। इस के बाद उन्होंने Chakan, Singhagarh और Purandar जैसे अन्य किलों, जो की बीजापुर सल्तनत के प्रदेशों के भीतर स्थित थे पर विजय प्राप्त की। शिवाजी पर दबाव डालने के लिए बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के पिता शाहजी राजे भोसले को कैद में डाल दिया। उसके बाद शिवाजी कुछ वर्षों के लिए चुप रहे। शाहजी राजे भोसले को सुल्तान द्वारा मुक्त कर दिया गया लेकिन शिवाजी ने फिर से विजय की गतिविधियों को शुरू कर दिया। 1655 तक शिवाजी ने Konkon और Javali के किले के उत्तरी भाग पर कब्जा कर लिया था।

इन अधिग्रहणों ने बीजापुर के सुल्तान , जिन्होंने शिवाजी के खिलाफ 1659 में अफजल खान नाम के एक वरिष्ठ जनरल के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी थी और उन्हें अदालत में जिंदा या मुर्दा शिवाजी लाने कद आदेश दिया था, को क्रोधित कर दिया। अफजल खान और शिवाजी के बीच हुई झड़प में, अफजल खान को शिवाजी ने मार गिराया था।

शिवाजी की सेना ने नवंबर 10, 1659 को प्रतापगढ़ की लड़ाई में बीजापुरी सल्तनत को हरा दिया। अत्यधिक मात्रा में गोलियाँ और युद्ध सामग्री एकत्र किए गए जिसने आगे चलकर मराठा सेना को मजबूत किया । इस जीत से शिवाजी का बहुत गौरव बढ़ा और वे सभी के प्रिय बन गए।

बीजापुर के सुल्तान ने फिर रुस्तम जमान के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेज दी, वह भी शिवाजी की शक्ति पर अंकुश लगाने में विफल रहा। लड़ाई 28 दिसंबर, 1659 को हुई थी। शिवाजी की मराठा सेना ने बीजापुरी सेना को कोल्हापुर की लड़ाई में हरा दिया। मराठों ने एक बड़ी संख्या में घोड़ों, हाथियों और युद्ध सामग्री प्राप्त की।

इस सफलता से उत्साहित शिवाजी ने 1657 में मुग़ल प्रदेशो में छापेमारी शुरू कर दी । औरंगजेब ने सोचा की शिवाजी को इसका दंड मिलना चाहिए। उसने एक बड़ी सेना शाइस्ता खान के साथ भेजी। उन्होंने Puna पर कब्जा कर लिया और वहां डेरा डाला। एक रात शिवाजी ने Puna पर अचानक हमला कर दिया। बड़ी संख्या में मुगल सैनिक मारे गए और शाइस्ता खान बच निकला।

इसके बाद, 1661 में, Kartalab खान शिवाजी से मुकाबला करने के लिए भेजा गया। उम्बरखिंड की लड़ाई में, मुगल सेना अपेक्षाकृत छोटी मराठी सेना से हार गयी।

इसके बाद औरंगजेब ने अम्बर के राजा जयसिंह और दिलीर को शिवाजी को वश में करने के लिए भेजा। जयसिंह ने कई किलो पर कब्ज़ा किया जिन पर शिवाजी का आधिपत्य था और उन्हें पुरंदर की संधि (1665 ईस्वी) करने पर विवश कर दिया ।

संधि की शर्तों के अनुसार शिवाजी मुगलों को 23 किलों सोपने, मुगल सम्राट की सर्वोच्चता को स्वीकार करने और बीजापुर के खिलाफ लड़ाई में मुगलों की मदद करने के लिए सहमत हुए। जयसिंह ने शिवाजी को आगरा की शाही अदालत चलने के लिए भी राजी किया ।

औरंगजेब ने शिवाजी के साथ अच्छा व्यवहार नही किया। उन्हें और उनके बेटे शम्भाजी उच्च निगरानी में रखा गया। लेकिन शिवाजी आगरा से निकलने में कामयाब हुए और घर पहुचने के बाद उन्होंने नए उत्साह के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। अंत में औरंजेब को उन्हें राजा के रूप में स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा।

1674 में शिवाजी ने खुद को महाराष्ट्र का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया और बड़ी धूमधाम और भव्यता के बीच उनका राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने छत्रपति की पदवी धारण की और फिर जिंजी, वेल्लोर और तंजौर के एक बड़े हिस्से पर विजय प्राप्त की। शिवाजी का 1680 ईस्वी में निधन हो गया।

शिवाजी एक महान नेता और प्रशासक थे। उन्हें संगठित और अच्छे तरीके से प्रबंधित प्रशासनिक और सैन्य प्रणाली की स्थापना के लिए जाना जाता है। अपने करिश्मे उन्होंने आसपास के लोगों को आकर्षित किया। लोगो ने उनमें वो नेता पाया जो समय आने पर जोखिम लेने से नही झिझका। शिवाजी में एक रचनात्मक प्रतिभा थी।

सेवाओं के लिए भर्ती में शिवाजी ने किसी भी समुदाय के लिए कोई पक्षपात नहीं दिखाया। कोई भेदभाव नहीं, न कोई जातिवाद, सांप्रदायिकता और कुछ नहीं था।

शिवाजी के सम्पूर्ण जीवन को देखा जाएं तो यही समझ में आता है की वो हमेशा मानवता के लिए लड़े।  स्वशासन उनका सबसे बड़ा उद्देश्य था । वो हमेशा स्वतंत्रता के पक्षधर रहे । हमें गर्व हैं की जिस देश में हम रहते हैं उसने ऐसे सपूत जो जन्म दिया जिसने अपना पूरा जीवन मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया ।

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