Savitribai Phule Biography In Hindi
सावित्रीबाई फुले एक महिला शिक्षिका और एक समाज सुधारक थी। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर महिलाओ के उत्थान के अनेक कार्य किये थे।
सावित्रीबाई पहले का जन्म सशक्त परिवार मे 3 जनवरी को महारष्ट्र के स्टार जिले के नाईगों गाव में हुआ था। उनका विवाह 9 वर्ष की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गया था। सावित्री बाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षका थी। सावित्रीबाई बहुत अच्छी कवियित्री भी थी और मराठी कविता में उन्हें महारथ हासिल थी। उनके पति ने उन्हें पढ़ने के लिए उत्साहित किया और नाईगों की महिलाओ के उत्थान के लिए कार्य करने को भी प्रेरित किया। 1852 में अछूत लड़कियों के लिए उन्होंने एक स्कूल खोला।
प्रारंभिक जीवन – पिछडो के उत्थान के क्षेत्र में काम करने वाले जोगो में सावित्रीबाई का नाम सबसे ऊपर है। उनके पति को बदलाव के कार्य करने के लिए महिला शिक्षिकाओ की आवश्यकता थी, इसिलिये उन्होंने अपनी पत्नी को अद्यापिका बनाया। जब यह खबर सावित्रीबाई के पिता तक पहूची तो रूढ़िवादी समाज के दर से ज्योतिबा फुले का त्याग कर दिया। अब सावित्रीबाई को अपने रूढ़िवादी परिवार और अपने समाज सुधारक पति में से किसी एक को चुनना था और उन्होंने अपने पति को चुना। इसके बाद उनके पति ने उन्हें प्रशिक्षण विध्यालय भेजा। वहाँ वो बहुत अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुई। अपनी पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। शुरू में उसमे 9 लड़कियों ने दाखिल लिया जो की अलग अलग जातियो से थी।
महिला शिक्षा – समाज के विरोध के बावजूद उन्होंने लड़कियों को पढना शुरू रखा। रूढ़िवादी समाज के द्वारा बहुत बार उनका तिरस्कार हुआ। ऐसे तिरस्कार के बाद उनका सहस टूट गया और उन्होंने सब कुछ छोड़ने का निर्णय कर लिया। उनके पति ज्योतिबा ने उन्हें समझाया और उन्हें हिम्मत दिलाई। इस तरह धीरे धीरे वो मजबूत होती गयी। शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पुरुस्कार भी दिया।
शिक्षा के अलावा सावित्री बाई ने अपने पति के समाज सुधारक कार्यो में भी उनका साथ दिया। ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने एक बच्चे को गोद लिया जिसकी माँ आत्महत्या करने जा रही थी। इस घटना के बात दोनों ने विधवा महिलाओ के उत्थान के लिए भी कई कार्य किये।
उनका अगला कदम और भी क्रन्तिकारी था। उन दिनों छोटी लड़कियों का बड़े और बुड्ढे आदमियो के साथ विवाह हो जाया करता था। उम्र ज्यादा होने के कारण या बीमारी से उनकी जल्दी मृत्यु हो जाया करती और उनकी विधवाओ को एक बेबस जीवन जीना पड़ता था। सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने उन्हें इस कुरीति तथा अछुतो की कुरीति से बहार निकलने के लिए हर संभव प्रयास किया। इसके लिए उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा पर उन्होंने किसी भी परिस्थिति में अपना कार्य नहीं रोका। अपने पति की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपने इस कार्य को जारी रखा।
समाज सुधार के आलावा सावित्रीबाई ने कई प्रेरणादायी कविताये भी लिखी। 1834 में उन्होंने काव्य फुले लिखी। सावित्रीबाई के इन कार्यो से महिलाओ की स्थिति समाज में न केवल सुधरी थी बल्कि महिलाओ ने अपनी शक्ति को पहचाना और आगे बढ़ी। सामाजिक सुधार कार्य करते हुए उनकी मृत्यु 10 मार्च 1897 को एक बीमारी के कारण हो गयी। जब भी समाज में महिलाओ के सशक्तिकरण की बात होगी तो सावित्रीबाई पहले का नाम आदर से लिया जायेगा।
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