1857 की बगावत के समय तात्या टोपे एक बागी नेता थे।  1857 की लड़ाई   आज़ादी की पहली लड़ाई थी।  आज़ादी की लड़ाई की प्रथम  शुरुआत करने का श्रेय भी तात्या टोपे को ही जाता है।  तात्या टोपे एक अन्य बागी नेता नाना साहेब के समर्थक थे।

Tatya Tope in Hindi
Tatya Tope in Hindi

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान – जब भारत में राजनीतिक बदलाव की हवा जोर पकड़ रही थी, तभी तात्या टोपे  में ब्रिटिश सरकार की एक टुकड़ी को हरा दिया।  नाना साहेब का अधिकार स्थापित करते हुए, उन्हें बागी सेना का सेनापति बना दिया गया।

ग्वालियर पहूचने के बाद ब्रिटिश सरकार के जनरल विंधम ने उन्हें कानपूर से पीछे हटने को कहा।  ग्वालियर की हार के बाद उन्होंने आप कार्य सगर मध्य प्रदेश , नर्मदा नदी क्षेत्र तथा राजस्थान में शुरू किया।  कानपूर की हार के बाद उन्होंने अपना मुख्यालय काल्पी में स्थापित कर लिया और रानी लक्ष्मीबाई के साथ जुड़ गए।  इसके बाद उन्होंने बुंदेलखंड की लड़ाई  लड़ी।  बाद में उन्होंने नाना साहेब को पेशवा घोषित कर दिया।

लेकिन इससे पहले की उनकी स्थिति और मजबूत होती एक यादगार लड़ाई में जनरल रोज से वो हर गए, इसी लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गयी थी।  ग्वालियर की लड़ाई के बाद तात्या टोपे के जीवन में नया मोड़ आया।  बुंदेलखंड, राजपुताना, और कई जगह उन्होंने विजय प्राप्त की।  कुछ समय के लिए तो उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर दिया था।

तक़रीबन 4500 किमी पीछा करने के  वो पहाड़ो, नदियों और जंगलो में रहते रहे , लेकिन ब्रिटिश सरकार के हाथ नहीं आये।  उनके करीबी मित्र मानसिंह के द्धारा उनकी सूचना दी गयी।  तभी ब्रिटिश सरकार ने नैपियर जनरल के नेतृत्व में उन पर आक्रमण किया।  1859  में सैनिक न्यायालय के द्धारा उन्हें बंधी बना लिया गया। 18  अप्रैल, 1859 में ब्रिटिश सरकार  के द्धारा मर दिया गया।

नागपुर में नाना राव उध्यान नाना साहेब और तात्या टोपे की याद में बनाया गया है। यहाँ पर उनकी आदमकद मूर्ति भी है।

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